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मेरे पास दिव्य दृष्टि तो नहीं

कल्याण सिंह राजपूत ‘केसर’
देवास (मध्यप्रदेश)
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हर तरफ है तेरी ही
महफिल नजर आती है,
मैं अंधा तो नहीं।
तेरे निश्चल प्यार की
पूजा करता हूँ,
तू रब का बंदा तो नहीं।

सुनता समझता हूँ
तेरी सभी बातों को,
मैं न समझ तो नहीं।
संजोकर रखी है
तेरी प्यारी बातें तो,
मेरा दिल कचरे का डब्बा तो नहीं।

डरता है यह दिल तेरी
जुदाई से, तो मैं कायर तो नहीं।
हर चेहरे पर दिखे तेरा
चेहरा, मैं पागल तो नहीं।

खुदा से क्यों तुझे ही
मांगता हूँ प्यार की भीख,
मैं भिखारी तो नहीं।
तरसता है यह मन
सदा तेरे साथ को,
तो क्या मैं उसके लायक भी नहीं।

जान लेता हूँ तेरी आँखों से तेरा हाल,
मेरे पास दिव्य दृष्टि तो नहीं।
खुशी में ना सही संकट के हर क्षण में,
क्या मेरा साथ ‘केसर’ दोगे नहीं॥