राधा गोयल
नई दिल्ली
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(विशेष:राम मंदिर प्रकरण के दौरान एक वानर की हर रोज न्यायालय के बाहर उपस्थिति, न्यायाधीश के पीछे-पीछे जाने और निर्णय के बाद से वानर के दिखना बंद होने पर रचित कविता)
कितने वर्षों बाद यह संभव हुआ है,
आज मेरे राम का मन्दिर बना है।
मन्दिर-मस्जिद का विवाद वर्षों से था चल रहा,
न्यायालय में उस मुद्दे पर, खूब वाद-विवाद रहा।
अदालत के बाहर मैं भी, रोज करता प्रतीक्षा,
प्रभु का मन्दिर ही बने, काश! हो ये फैसला।
ऊहा-पोह में न्यायाधीश, फैसले में क्या लिखें ?
सोच में गमगीन होकर, अपने घर को जा रहे।
जब वो अपने घर चले, तब मैं भी पीछे चल पड़ा,
मुड़ के जब देखा उन्होंने, मुझको तब पाया खड़ा।
अदालत से आते-जाते, रोज मुझको देखते थे,
अनसुलझे से रहस्य, उनके मन में कौंधते थे।
अंत में फिर फैसले की, घड़ी भी आ ही गई,
जाने क्या हो फैसला, साँस ही अटक गई।
राम मंदिर ही बनेगा, फैसला यह हो गया,
राम जन्मभूमि पर अब भव्य मन्दिर बन गया।
तकता हूँ मन्दिर को, ‘बेहद हर्ष और आल्हाद’ से,
वर्षों बाद विवाद सुलझा, कितने वाद-विवाद से॥