संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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शिक्षक समाज का दर्पण…
गुरु ब्रम्हा,
गुरुर विष्णु
गुरु देवो महेश्वरा,
यह सब तो मेरी समझ के परे है
सत्यम शिवम् सुंदरम् है कि नहीं,
यह भी मैं जानता नहीं
लेकिन एक बात जरूर जानता हूँ,
जिसकी वजह से मेरा निर्माण हुआ
जिसने मुझे देखना, सुनना और समझना सिखाया
वही मेरा पहला गुरु ब्रम्हा है।
मैं जानता हूँ वह मेरी माँ है,
हाथ पकड़ कर चलना सिखाया
भले-बुरे का ज्ञान पढ़ाया,
रिश्ते-नाते, समाज के
कई नए सबक़ समझाए,
वह मेरे विष्णु हैं।
मैं जानता हूँ वह मेरे पिता हैं,
काम, क्रोध, द्वेष, मत्सर के साथ
नीति-कुनीति, रीति-रिवाज,
अच्छा, बुरा, सही का साथ
बुरे का विनाश जिसने सिखाया, वह कोई और नहीं।
वही तो शायद महेश है,
मैं जानता हूँ वह मेरे गुरुजी हैं॥