हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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मैं तो जनता हूँ जनाब,
पन्ने दर पन्ने की खुली किताब
मुझे पढ़ने का देते हैं सभी सुझाव,
जो पढ़े न मुझको उसे देती हूँ जवाब
घटना के बाद फिजूल है हिसाब-किताब,
मैं तो जनता हूँ जनाब
मेरे भी तो हैं कुछ ख्वाब…।
समझ नहीं आते सत्ताधीशों के ख़्वाब,
भीगी बिल्ली वोटों को, कुर्सी पे रूआब
मेरे हाट के सौदे का, मुझे ही बताते भाव,
फिर तो मुझे भी आता है, देना भाई जवाब,
मैंने भी तो देखे हैं, पड़ावों पर आते पड़ाव,
मैं तो जनता हूँ जनाब
मेरे भी तो हैं कुछ ख्वाब…।
भोली हूँ मैं, कुछ बहुत ही ज्यादा साहब,
मुझ पर खेले हैं, कई शकुनी मामाओं ने दाँव
सबका बारी-बारी से, मैंने पूरा किया है चाव,
मेरी ही धौंकनी से, मिला है सबको सदा से ताव
फिर भी न जाने क्यों ? करते नहीं है मेरा बचाव ?
मैं तो जनता हूँ जनाब
मेरे भी तो है कुछ ख्वाब…।
मैं कहाँ कहती हूँ ? कि, जश्न जीत का न मनाओ,
बल्कि मुझे भी जश्न-ए-जीत में चाहो तो बुलाओ
मैं कहाँ कहती हूँ ? कि, तुम भूखे रहो, न खाओ,
मैंने कब कहा ? तुम अपनी उपलब्धियाँ न गिनाओ
पर साहेब, मुझपे ही सवार हो, मुझे ही तो न भुलाओ।
मैं तो जनता हूँ जनाब,
मेरे भी तो हैं कुछ ख्वाब…॥