दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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अंधविश्वास,
इतना बढ़ गया है कि
मॉं-बाप को छोड़कर लोग,
गैरों के पैर पड़ रहे हैं।
अरे मूर्खों !
कोई देहधारी भगवान होता नहीं
मॉं-बाप से बढ़ के कोई होता नहीं,
उसको छोड़ रहे हैं।
गैरों के पैर पड़ रहे हैं…
जैसे तेरे अंदर गंदगी भरी है,
उसके अंदर भी गंदगी भरी है
उसके पैरों तले की मिट्टी छूने से,
कभी मोक्ष मिलता नहीं है
फिर क्यों उसके लिए बेचैन हो रहे हैं,
मुफ्त में जान गवां रहे हैं।
गैरों के पैर पड़ रहे हैं…
शास्त्रों में स्त्री के लिए पति परमेश्वर,
वही हैं उसके मुक्ति दाता
फिर दूसरे के पति को देखने के लिए,
क्यों उतावले हो रहे हैं ?
अपने पति पर हाथ उठा रहे हैं,
दूसरे का चरण स्पर्श कर रहे हैं
ये कैसे मोक्ष पा रहे हैं ?
गैरों के पैर की धूली ले रहे हैं।
गैरों के पैर पड़ रहे हैं…
भक्तों से कह देते-सोना-चाँदी बेकार है,
अपने हारों से लदे रहते, ये कैसा विचार है ?
लाखों लेते हैं तब कथा बांचते हैं,
धन-दौलत बेकार है, समझाते हैं
अरे मुक्ति पानेवालों !
जितना पैसा ढोंगियों पर खर्चते हो,
उतने में धर्मग्रंथ खरीद कर पढ़ लो
भगदड़ में नहीं मरोगे,
घर में ही पूजा-पाठ करोगे, शांत रहोगे
घर के भगवान की अनदेखी कर रहे हैं,
ढोंगियों-पाखंडियों के पीछे भटक रहे हैं।
गैरों के पैर पड़ रहे हैं…
‘दीनेश’ अब देख रहा है,
समय बड़ा खराब आ रहा है
२१वीं सदी में भी अंधविश्वास बढ़ रहा है।
कैसे मिलेगी मुक्ति, सब गर्त में जा रहे हैं,
गैरों के पैर पड़ रहे हैं…॥
परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।