प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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मोह गली नित आना-जाना,
मुश्किल है भव से तर-पाना।
सारा तमाशा है हसरत का,
कहीं बिछड़ना ओ मिल जाना।
मैं, मेरी दुनिया, मेरे परिजन,
क्यों छूट जाए पल में ठिकाना।
दुनिया का खेला-मेला है,
दो दिन का संबंध निभाना।
बैठे जीवन नाव में सब ही,
मरें-तरें, ये किसने जाना।
मोह ने सब दुर्गति बनायी,
छूटे ना फिर भी ये मरजाना।
रोये तेरी खातिर जो भी,
उसकी कामना का तू ठिकाना।
तू मेरा, मैं तेरा हरदम,
झूठा जग का है ये फसाना।
सुंदर उपवन जग प्रभु जी का,
सब फूलों को है मुरझाना।
सबको दुःखी करके जो खुश है,
निश्चित विकट दुःखों को पाना।
सुख देता है लौट सुखों को,
दुःख दे दुःख, सिद्धांत पुराना।
रोज फूंकें शमशान में मुर्दे,
दो पल दुःख, फिर मौज मनाना।
हर क्षण मौत करें सिर तांडव,
करो ना प्रभु सुमिरन मनमाना।
ओस की बूंदें सुख जीवन के,
जीवन-पत्र से है ढुल जाना।
साधु संग जब मिले निरंतर,
कटे मोह का ताना-बाना।
संत कहे दो पल का जीवन,
क्यों माया में भटक बिताना।
साथ जाए हरि भजन सभी के,
वही नहीं करता दीवाना।
हरि भजन हो हर कारज में,
कर्म हाथ मुख नाम जपाना।
जिन सोचों में जीवन बीते,
अंत समय उनको दोहराना।
करो वचन विश्वास सतगुरु,
बस प्रभु चरनन नेह लगाना।
खुशियों के बाजे बजते हैं,
प्रभु घर जाओ रोना-गाना।
प्रभु दुल्हन बन डूब प्रेम में,
सज प्रभु भक्ति प्रभु घर जाना।
मोह गली नित आना जाना।
मुश्किल है भव से तर पाना॥