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मौन में छिपी सिसकी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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गरीबी के आँसू की धारा, अविरत प्रवहित अवसाद कहे
मौन में छिपी सिसकती सिसकी, दीन हीन स्वयं हमराह कहे।

निशिदिन मौन मेहनती अविरत, दुनिया उनको मजदूर कहे
भूख प्यास आतर जठनानल, बन अम्बर छत मजबूर कहे।

अश्क विरत नयना बन खोदर, मिल पीठ पेट हैं एक बने
कृश काया मर्माहत चितवन, क्षुधित पीड़ित सन्तान रहे।

टकटकी लगाए प्राप्ति आश, दाता चाहे निज दास करे
हो क्या माने अपमान मान, जीवन दुःखदायक हास करे।

गज़ब धैर्य साहस जीवन पथ, नित स्वाभिमान संघर्ष सहे
अतिसहनशील अवसाद निरत, आत्मनिर्भरता पहचान रहे।

है गरीब, पर खु़द्दार बहुत, निर्माणक जो निज राष्ट्र रहे
रखता ज़मीर ईमान सतत्, इन्सान विनत निज दर्द सहे।

अरमान नहीं, अवसान नहीं, निर्भीत मनसि निशि नींद मिले
मुस्कान मौन दुःखार्त अधर, परमार्थ मुदित अवसाद सहे।

बढ़ यायावर अनिश्चय पथ, नित अश्क नैन जल पान करे
मधुपान गरीबी हालाहल, मदमत्त सड़क तरु शयन करे।

बढ़ चले डगर बिन राग कपट, संकल्पित मन विश्वास भरे
परिवार बोझ ढो कंधों पर, दर्रा गिरि जंगल विघ्न खड़े।

कर्तव्य पथिक अधिकार विरत, आधार प्रगति अपमान सहे
वास्तुकार शिल्पी गजधर, पर भूख वस्त्र छत हीन रहे।

निज व्यथा कथा आँसू बनकर, बन मौन विकल करुणार्द्र कहे
विधिलेख मान दारुण जीवन, असहाय गरीबी धार बहे।

अभिलाष कहाँ आँसू जीवन, जब व्याधि गरीबी अमर बने
चिलका समेट माँ अन्तस्थल, सम ममता गम सुख साथ सहे।

जनमत नेता गण सदा वतन, खा कसम पूर्व जनमत चाहे
जीते भूले उपकार कसम, दीनार्त सीदित को गुमराहें।

बन क्षमाशील युगधारा जग, सामन्त पीड़ मुस्कान भरे।
संतुष्ट मुदित पा मानिक तन, रवि अर्घ्य दान निज अश्रु लिए।

अश्क पोंछे कौन गरीबों के, सत्ता सुख शासन मौज करे।
हरे कौन दुख-संताप विकल, मौन में छिपी सिसकी झलके॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥