डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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आतंक, विनाश, ज़िन्दगी (पहलगाम हमला विशेष)…
धर्म का खेल घिनौना ऐसा,
सुन जीते-जी मैं मर गयी
मानवता शर्मसार हुई,
नई गाथा फिर गढ़ गयी।
कितना जहर भर हवा में,
ये मंजर हमें दिखाता है
गलियाँ-बस्ती सूनी हो गयी,
मानव व्यवहार बताता है।
घर उजाड़े और सपने छीने,
दामन भर दिए काँटों से
सोंचो बात बनेगी कैसे, क्या,
बदले में दिए गुलाबों से।
कैसा दृश्य भयावह होगा!
हाथ-हाथ में खंजर होगा
नग्न मौत को नाचते देखा,
सोंचो कैसा मंजर होगा ?
मौन रहना अब ठीक नहीं,
कुछ तो फर्ज निभाना होगा
राहें दुर्गम है लेकिन,
दर्पण उसे दिखाना होगा।
अमन, चैन, सद्भावना हो,
हिन्द को हमें बचाना होगा।
चुन-चुन गद्दारों को मारो,
बाग-बाग मन मेरा होगा॥