सौ. निशा बुधे झा ‘निशामन’
जयपुर (राजस्थान)
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मौसम भी बड़ा लाज़वाब होता है,
अपने ही रंग में रंगा होता है
कभी हँसता, तो कभी ग़मगीन होता है,
सात रंगों के हसीन, रंगों से रंगा रहता है।
आसमान पर कई तरह की छटा बिखरे,
काला, नीला तो कभी गुलाबी होता है
आज भी आसमान में रंग भरे हुए हैं,
पर! उदासी की दास्तान बिखरी पड़ी है।
आज क्या ? हुआ जो तूने रूद्र रूप ले रखा है,
मौसम तू भी बड़ा खुशमिज़ाज होता है
पर तेरे बदलते तेवर से, मुझे डर लगता है,
कहीं तू भी भँवर में न डाल दे, ऐसा लगता है।
खट्टी-मीठी, अजब दास्तान है तेरी,
अब तू ही बता, क्या इरादे हैं! तेरे
तेरे आने से बहार आती है और,
तेरे चले जाने से बहार भी चली जाती है।
तू है तो ये जहान प्यारा-सा लगता है,
वर्ना! वीरानों में कहाँ जीवन होता है।
हाँ! मौसम तू भी बड़ा रंगीन रहता है,
हाँ! तू भी बड़ा लाज़वाब होता है॥