शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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ख़ून,
हत्या
गोलियाँ,
धमाके
यही ज़िंदगी है क्या…!
मरुस्थलों में,
मृगतृष्णा-सी
बन रही,
यही ज़िंदगी है क्या…?
मौत,
ही
मौत का,
साया
बनी प्रश्न कर रही
यही ज़िंदगी है क्या…?
कहीं
से,
कैसे
जाने !
धूप के
रास्ते में,
छाँव बन रही
यही ज़िंदगी है क्या…!!