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यादों के कानन में

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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सुनो प्रिये,
आज तुम्हें गए २ साल हो गए प्रिये,
जी रहे हम, तेरी यादों के सहारे हैं जिये।

जख्म दे गई तुम, वो अब भरता कहाॅं,
तेरे जैसा नहीं, अब कोई भी तो यहॉं।

३ अक्टूबर २०२२ तो बड़ा मनहूस हुआ,
तुझे अपने साथ लेकर के ही वो गया।

तेरा तो सपना शायद सब पूरा हो गया,
मेरा तो सब कुछ अधूरा ही रह गया।

तुम तो बैठी हो प्रभु के घर बड़े आराम से,
हम तो बेचैन होते रहते हैं तेरी यादों से।

कुछ इच्छाएं रह जाती हैं सबकी अधूरी,
न जाने कब होती हैं वह सबकी पूरी!

फीकी-फीकी लगती है अब ये दुनिया सारी,
खाली-खाली पड़ी है फूलों की सब क्यारी।

जिधर देखता हूॅं, तुमको ही ढूंढता हूॅं,
हर कली में मैं तेरा ही अक्स ढूंढता हूॅं।

आ गई है फिर से वही मॉं दुर्गा की पूजा,
जाती थी करने पूजा, हो के सदा तू दूजा।

अब तुम्हीं बताओ मॉं की शरण में कैसे मैं जाऊॅं!
किस विधि से मैं, फिर से तुमको पाऊॅं!

देना आशीष तुम, ऊपर से हम सबको,
प्रभु से माॅंग देना थोड़ी-सी खुशियाॅं हमको।

खुश रहती हो तुम प्रभु के घर-ऑंगन में,
हम भी खुश रहगें तेरी यादों के कानन में॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।