मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)
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आज ज़िंदगी की किताब के पन्नों को जब दिल ने पलटाया,
बहुत कुछ भूला-बिसरा याद आया
कुछ यादों के पन्नों ने मुझे गुदगुदाया,
किसी ने मुझे रुलाया, किसी ने मुझे खूब हँसाया
ज़िंदगी कहाँ से कहाँ पहुँच गई, यह भी समझ आया,
यादों ने आज अपने बचपन से दुबारा मिलवाया
कितना प्यारा था वह बचपन सोच के मन मुस्काया,
तभी दिल ने कहा-अपने बच्चों के बचपन में भी जरा झांक ले
उनके उन पलों को भी फिर से कल्पना में ही सही देख ले,
जब उन्हें बार-बार गिरकर संभलते कल्पना में पाया
तब मन खुशी से मेरा भर आया।
आज ज़िंदगी की किताब के पन्नों को जब दिल ने पलटाया…
पहले खुद का बाबुल के गले लगकर बिछड़ना,
फिर अपना बेटी से बहू बनने तक का सफर बहुत याद आया
न चाहते हुए भी बेटियों की बिदाई के दृश्य ने बहुत रुलाया,
जब अपनी बेटियों को अपना जीवन दोहराते पाया
तब मेरा मन खुशी से फूला न समाया,
माँ से लेकर नानी माँ बनने तक के पल को सोचकर मन हर्षाया।
आज ज़िंदगी की किताब के पन्नों को जब दिल ने पलटाया…
यादों के पन्नों ने गुजरी हुई ज़िंदगी से कई बार है मिलवाया॥