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युवा वर्ग ही बचाए धरती को

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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प्यार की धरा जहां लगातार प्रभावित होती रहती है, सत्य, अहिंसा, त्याग व दया की नींव पर मानव अपने सिर को ऊँचा करके चलता है। जहां पशु-पक्षियों तथा अन्य प्राणियों की रक्षा व उनकी सुरक्षा करना हम सभी के धर्म में लिखा है, वहीं भारतीय संस्कृति व सभ्यता की अनमोल धरोहर पशु-पक्षियों में भी है। इसके कई उदाहरण हमारे धर्म ग्रंथों व धर्मशास्त्रों में मिलते हैं। आज हम लोग विज्ञान के आधुनिक दौर में जकड़े हुए हैं। देखना होगा कि यह नादानी हमें कहाँ ले जाती है। कल जो भारत ‘सोने की चिड़िया’ कहलाता था, वह दूसरे देशों से क़र्ज़ ले रहा है। जहां सदा प्रेम की मुरलियाँ बजती थीं, जहां दूध की गंगा बहती थीं, वहीं आज पूरी धरती में जहाँ देखो, वहाँ खून की नदियाँ बह रही है। हमारी मातृभूमि खून से लथपथ हो गई है। हिंसा मार-काट के कारण आज मनुष्य भटक रहा है। इसलिए, सामाजिक धार्मिक व मानव सेवा की प्रवृत्ति खत्म-सी होती जा रही है।
भारत जैसा देश जो कल तक कृषि प्रधान देश कहलाता था, जहां दूध की धारा बहती थी, उसी देश में आज पशु मांस से धन कमाया जा रहा है। दूध की जगह खून की नदियाँ बह रही है। आज भोगवादी संस्कृति में आदमी, आदमी का दुश्मन बना हुआ है। हिंसा का बोलबाला है, यह कैसा अनादर है ? देश के लोगों की यह कैसी मनोदशा हो गई है। लोगों के अन्दर देश-प्रेम व मानव सेवा के साथ पशु-पक्षियों के लिए प्रेम व स्नेह का भाव धूमिल हो रहा है। जिस देश में गाय, बैल, मुर्ग़ी, बकरी, मछली आदि मूक प्राणियों का मांस खुलेआम बिक रहा है, फिर भी आज का युवा वर्ग चुपचाप बैठे हुए यह सब देख रहा है। धिक्कार है आजकल की युवा पीढ़ी पर, जो युवा होते हुए भी सब देख रही है। ऐसी युवा पीढ़ी को अब जागना ही होगा, क्योंकि युवा भारत में युवा पीढ़ी सोई हुई हो तो वह देश कैसे आगे बढ़ सकता है!
आज जारी हिंसा में सबसे ज्यादा पशु-पक्षी प्रभावित हो रहे हैं। जो मानव कल तक पशु-पक्षियों को अपना शुभचिंतक व हितैषी मानता था, वही मानव आज उनका मांस खा रहा है। इस तरह के हत्याचारी, कत्लखानों व मांस विक्रय केन्द्रों से धरती माँ खून से लथपथ हो गई है।खून से लथपथ इस धरती को अब युवा तरुणाई ही बचा सकतीं है। अगर वह खुद सदाचारी व शाकाहारी हो तो बात बनेगी। आज की युवा पीढ़ी का शाकाहारी होना समय की आवश्यकता है। इन युवा तरुणाई में सभी धर्म के युवा साथियों को मांसाहारी चीजों का त्याग करना होगा और मांस विक्रय केन्द्रों व बूचड़खानों के प्रति अपनी अभिव्यक्ति बुलंद करनी ही होगी। तभी मांसाहार की खरीद-फरोख्त का धंधा बंद होगा। संगठित होकर अपनी चेतना को जागृत करना होगा। इस विषय पर युवा पीढ़ी को अपनी आवाज उठानी पड़ेगी।
अगर हम अपने यहाँ ही मातृभूमि पर पशु-पक्षियों का कत्लेआम होते हुए देखेंगे, तो यह शर्म की बात होगी। यह पूरे समाज व राष्ट्र के लिए कलंक का विषय है। जिस गाय माता का दूध पीकर हम अपने शरीर को स्वस्थ बनाते हैं, उसी गाय को कसाई के यहाँ हत्या करने हेतु दे देते हैं, यह तो महापाप है। जिस गो माता का दूध पीते हुए हम बड़े हुए, उसके बेटे ही उसकी हत्या कर मांस बेच रहे और खा भी रहे हैं ? आज मांसाहारी खाना खाने वाले व्यक्तियों में बीमारी काफी ज्यादा पाई जाती है। जैसे- कैंसर, ब्लडप्रेशर, मोटापा, गुर्दे के रोग, कब्ज और अन्य संक्रामक रोग सहित पथरी व जिगर की बीमारियाँ इसमें हैं। हमारे देश में पश्चिमी देशों से ज्यादा बीमारी पायी जाने लगी है। इस परम सत्य को कई प्रसिद्ध शोधकर्ताओं व चिकित्सकों ने कहा है, कि जो व्यक्ति शाकाहारी होता है, उसका मन शांत व खुशमिजाज होता है। अतः, सभी युवा पीढ़ी को शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए तथा मांस, शराब, चरस, तम्बाकू, बीड़ी सिगरेट आदि अन्य नशीली चीजों व मांस का सेवन नहीं करना चाहिए। मूक पशु-पक्षियों को मारकर उनका मांस खाना कहाँ की मानवीय संवेदना है ? विरोध तो होना चाहिए कि मांसाहारी चीजों को खाना बंद करें। यह एक तरह की बुराई है। इसके प्रति युवा पीढ़ी को सजगता के साथ शाकाहारी भोजन की तरफ बढ़ना चाहिए। तभी राम, कृष्ण, प्रभु महावीर, गांधी व विवेकानंद जैसे महापुरुषों के इस भारत में अहिंसा व शन्ति बनी रहेगी। इससे भारत का स्वाभिमान भी जागृत होगा। तभी भारत प्रगति पथ पर आगे बढ़ता रहेगा । आज समय है कि सभी अहिंसा प्रेमी बंधुओं की पुकार शाकाहार होना चाहिए। शाकाहारी आहार के प्रति ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना होगा और अपनी धरती को बचाना होगा।