ममता साहू
कांकेर (छत्तीसगढ़)
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दिसम्बर का महीना आया,
संग में देखो क्या-क्या लाया।
कांप रहे सब सर्दी में,
लिपटे हैं ऊनी वर्दी में।
ठंड का बढ़ गया कहर,
चल रही है शीतलहर।
स्वेटर, टोपी, मोजे, मफलर,
बन गए हैं हमसफर।
चलने लगी जब पुरवाई,
निकाले सबने कम्बल-रजाई।
दुबक गए सब बिस्तर पर,
देर से सूरज पड़े दिखाई।
कभी छाए घना कोहरा,
कभी ओस की हो बरसात।
दिसम्बर की ऐसी रात,
करती है सब पर घात।
किसी को सर्दी-जुकाम सताए,
किसी को पिया की याद आए।
सर्दी का ये प्यारा मौसम,
छोटे-बड़े, सबके मन भाए॥