डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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कहाँ गया रिश्तों में प्रेम…?…
बड़े प्रेम से रिश्ते थे, गहन भाव मन साथ।
मात पिता आशीष का, त्याग क्षमा सब हाथ॥
भरा हुआ घर स्वर्ग-सा, सदा रहे जगदीश।
पले बढ़े बाल-बालिका, मिले उन्हें आशीष॥
आस-पास के पड़ोसी, बुआ, बहन थे सभी।
कभी चाची जी मासी, भाई-बंधु सब तभी॥
बड़ी अमीरी स्नेह की, सभी प्रेम धनवान।
खोज खबर निस्वार्थ थी, लगे सभी भगवान॥
बदल रहे अब तो रिश्ते, कहॉं प्रेम अब नाथ।
कहाँ गये दिन खुशी के, अकड़ सभी के साथ॥
भाव लगे ऊपर सदा, बना विश्व छल काज।
टूट रही संबंधता, विश्वास खोजे आज॥
बदल रही अब मर्यादा, प्रेम मिले यह राज।
सोच सही करिए वादा, घृणा भरी कृत आज॥
क्रोध हुआ अब बली, विकृत हो रही राह।
कहीं कांड कर दानवी, क्या पाते मन चाह॥
भाग-दौड़ लिए ज़िंदगी, बना समय बलवान।
मिले प्रेम की बंदगी, ठगा रहा इंसान॥
सहन शक्ति हीनता की, प्रेम से हुए फकीर।
स्वयं क्षीण करते सभी, हृदय द्रवित अधीर॥
खोज रहा नादान मन, किधर धैर्य सुख राग।
भटक रहा वो दरो-दर, मिले ईश मम भाग॥
बचे हुए कुछ स्नेह के, सुखद रिश्ते भगवान।
सदा कृपा भावना से, करिए मान सम्मान॥
ज्ञान दान संस्कृति सुख, समझ रिश्ते का मोल।
रखिए स्नेह को सुधामय, स्वार्थ रहित अनमोल॥
कहे आश है प्रेम तप, कोमलता का राग।
सत्य भरी हो भावना, प्रेम सुधा अनुराग॥
परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है