पी.यादव ‘ओज’
झारसुगुड़ा (ओडिशा)
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रंग बरसे…(होली विशेष)…
रंगों की होली से ना हो चूर ऐ दुनिया,
देख सरहद पर लाल-रंग कैसे बिखरा पड़ा है
जश्न-ए-रंग की खुमारी से तू बाज आ,
देख! सरहद की खातिर कैसे रणवीर खड़ा है।
खून की होलियाँ देखो वो कैसे खेलने चले हैं,
मांग माँ की देखो खून से भरने को वो अड़े हैं
भर लो पिचकारियाँ-गुब्बारे भले ही तुम रंगों से,
हौसलों के रंगों से देखो वो बांकुरे कैसे खड़े हैं।
उड़ाओ गुलाल और तुम रंगों के जश्न मनाओ,
वो फतह का जश्न देखो मनाने को आगे बढ़े हैं
भर दो फ़िजाओं में तुम बेइंतहा प्रेम के रसरंग,
वो माँ के चरणों में बूँद-बूँद लहू चढ़ाने को डटे हैं।
मौज-ए-जश्न ही जिंदगी की वतन परस्ती नहीं,
पड़ती है कीमत चुकानी राह-ए-कुर्बानियों की
कतरा-कतरा बह पड़ता यूँ ही जिस्म से लहू का,
धुलती उसी लहू से चरण धरती रूपी दुल्हन की।
जश्न जरूरी है बेइंतहा ज़िंदगी में रंग से रंगों का,
पर सरहद की हिफाजत भी बेइंतहा जरूरी है
गर वतन परस्ती का जज्बा है जो जिगर में तो,
ज़िंदगी के हर-रंगे जश्न की कुर्बानी भी जरूरी है।
बहुत ही जी लिए हम मौज-ए-जश्न में जिंदगी,
अब वतन पर बेझिझक जां लुटाने की बारी है
जिस राह पर चले हैं सरहद के वे वीर-जवान,
उस अग्निपथ पर चलने की अब हमारी बारी है।
रंगों की होली से ना हो चूर ऐ दुनिया,
देख सरहद पर लाल-रंग कैसे बिखरा पड़ा है।
जश्न-ए-रंग की खुमारी से तू बाज आ,
देख! सरहद की खातिर कैसे रणवीर खड़ा है॥