प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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अगाध श्रद्धा शिव-शंभू पर शिव की कृपा से होय,
दुखिया रोवे रात-दिन पर कृपा पाय कोय-कोय।
शिव-शिव शिव-शिव करती रसना रस टपके शिव नाम का,
पावन ये चरणामृत पी ले ले आश्रय शिव-नाम का।
नाम प्रभु मुख चले निरंतर भूल से हो जाए जो असत,
तुरत भस्म हों पाप-कर्म फिर प्रभु का नाम उन्हीं का सत
शिव ही बचायें हर माया से अंकुश उनके विराम का।
प्रभु शरणागत अपना पाप-पुण्य न आगे ले जाए,
प्रभु-मिलन की इच्छा जीवन कटे मृत्यु को अपनाए
कृपा से मिलती शिव भक्ति आशीष जिन्हें श्री राम का।
मन को तुम जिस ओर लगाओ ये उसमें लग जाता है,
भोग छोड़ प्रभु नाम रटाओ ये रटने लग जाता है
प्रभु नाम लत इसे लगा दो काम नहीं आराम का।
कई वासना जनम-जनम की प्रभु- दर्शन से ही कटती,
इनको अवसर मिले जरा फिर पैर पसारे आ डटती
त्राहि-पाहि शिव चरण करो तो आता समय लगाम का।
आर्त-भाव से शिव को पुकारूं हारी इस जीवन रन से,
एक भरोसा शिव का मुझको छूटी आस तन, मन, धन से
बार-बार इस जग में फेरा माया के गुलाम का।
दीर्घ-काल धर धीर मना में शिव की आस को तोड़ ना,
वर्षों तक जल प्रभु-लगन में नाम लेवन को छोड़ ना
दे के समर्पण भक्ति मिलती काम नहीं यहाँ दाम का।
नित्य जपन मन भीतर होवे अकाल मृत्यु हरण करें,
यम के दूत ना हाथ लगायें जो शिव-शंभू वरण करें
जा पहुंचे वो शिव चरणों में वासी हो शिव धाम का।
शिव-शिव शिव-शिव करती रसना रस टपके शिव नाम का,
पावन ये चरणामृत पी, ले ले आश्रय शिव-नाम का॥