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राजू की शादी

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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राजू मेरा बचपन का मित्र था। हम दोनों एकसाथ विद्यालय और महाविद्यालय में पढ़े थे। उसके बाद हम दोनों को अलग-अलग शहर में मुझे रेलवे में नौकरी मिल गई और राजू को बैंक में। एक दिन राजू का फ़ोन आया,बोला,-मुझे एक लड़की शादी के लिए पसंद आ गई है। तुझे आकर लड़की के माता-पिता से बात कर मेरी शादी पक्की करनी है। मुझे इस बात पर ख़ुशी तो हुई कि चलो हम दोनों में राजू पहले शादी कर रहा है,पर उसकी शादी के लिए लड़की के माँ-बाप को राजी करवाने की बात याद कर मैं पसीना-पसीना हो गया,क्योंकि मैंने कभी इतने सीरियस किस्म का काम नहीं किया था। ‘शोले’ फिल्म की याद आ गई,जिसमें वीरू मौसी के पास जय की शादी बसंती के साथ तय करने का प्रस्ताव ले कर गया था,पर वह बात फिल्म की थी,और यह बात वास्तव की है और मेरे प्यारे दोस्त की है। अगर कहीं कुछ गड़बड़ हो गई तो राजू मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगा।
खैर,एक दिन मैं अपने शहर से बस में सवार होकर राजू जहाँ नौकरी करता था,वहां के लिए निकल पड़ा। करीब १२ घंटे का रास्ता था,इसीलिए टैब भी ले लिया था ताकि बस में जाते-जाते कुछ नई पिक्चर देख लूँगा और अगर समय मिले तो किन्डल में कुछ किताब भी पढ़ लूँगा। मैंने टिकट पहले से खरीद ली थी और राजू को भी बस स्टैंड में आने के लिए बोल दिया था। बस शाम के ६ बजे छूटनी थी, और मेरा गंतव्य उस हिसाब से सबेरे ६ बजे आना था।
निश्चित दिन मैं शाम को स्टैंड से बस में सवार हो गया था। बस २ सीटर थी और मुझे खिड़की वाली सीट मिली थी। निश्चित समय पर बस चल निकली। मैं अपना टैब निकालकर कान में ईयर फोन लगाकर फिल्म देखने में मगन हो गया। थोड़ी देर में बस रूकी और एक परिवार सामान लेकर बस में चढ़ा। मैंने देखा तो मेरे पीछे वाली सीट में एक बूढ़े आदमी और औरत बैठ गई और मेरे बाजू वाली सीट में उनकी लड़की बैठ गई। उनका सामान ऊपर रखने में मैंने भी थोड़ी-बहुत मदद कर दी। उसके बाद बस चलने लगी और मैं भी फिल्म देखने में तल्लीन हो गया। कुछ देर बाद बाजू में बैठी लड़की ने मुझे कुहनी मारी। मैं चौंक गया,उसकी तरफ देखा तो बोलने लगी,-मैं कितने देर से आपसे बात कर रही हूँ,पर आप हैं कि जवाब ही नहीं दे रहे हैं। बहरे हैं क्या ?
उसकी बात सुनकर मुझे कुछ अटपटा लगा। कैसी लड़की है,न जानती है न पहचानती है,और बिल्कुल लड़ाई के तेवर में आ गई। मैंने फिल्म को पॉज किया और कान से ईयर फोन निकालकर उसकी तरफ देखा। देखा तो मैं जिसे एक छोटी लड़की समझ रहा था,वह एक अच्छी-खासी नवयुवती थी, और नाक-नक्श भी काफी आकर्षक थे। मैंने जिज्ञासावश उसकी तरफ देखा तो रौब झाड़ते हुए मुझे बोली,-आप ही क्या अकेले-अकेले फिल्म देखेंगे और मैं आपके बाजू में बैठ कर बोर होऊंगी! ऐसा नहीं हो सकता है।
मैंने पूछा,-तो आप क्या करना चाहती हैं ?
वो मुस्कुराकर बोली- ईयर फोन का एक सिरा मुझे दे दीजिए,मैं भी आपके साथ मिलकर फिल्म देखूंगी। अपना समय भी कट जाएगा और मुझे बोरियत भी नहीं होगी।
मैं ठहरा एक छोटे से कस्बे में पला-बढ़ा युवक,मुझे लड़कियों के साथ बात करने तथा उठने बैठने की झिझक दूर नहीं हुई थी। मैं उसके रुआब में आ गया और हड़बड़ा कर ईयर फोन का एक सिरा उसके हाथ में पकड़ा दिया। मैंने फिर फिल्म का प्ले बटन दबाया ही था कि उसकी अगली फरमाइश आ गई,-नहीं ऐसा नहीं होगा,आप फिल्म को शुरू से लगाइए। मैंने यह फिल्म नहीं देखी है,इसीलिए इसे शुरू से देखना चाहती हूँ।
मैंने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि उसके माँ-बाप पीछे बैठकर ख़र्राटामार रहे थे। थोड़ी देर में बस में मिक्चर,चिप्स और अन्य खाद्य सामग्री बेचने के लिए खोमचे वाला चढ़ गया। मैंने उसे बुलाकर चिप्स का १ पैकेट लिया और उस लड़की ने पॉपकॉर्न का १ पैकेट लेकर पैसे देने की बात तो दूर रही,तुरंत पैकेट खोलकर खाना शुरू कर दिया। खोमचे वाले ने जब उससे पैसे मांगे,तब उसने मेरी तरफ इशारा कर दिया। मैं तिरछी नज़र से देख ही रहा था कि यह युवती क्या करती है। जब खोमचे वाले ने पैसे के लिए मेरी तरफ हाथ बढ़ाया,तब मैंने मन मसोस कर उसके पॉपकॉर्न का भी पैसा चुका दिया। वह लापरवाह होकर फिल्म देखते हुए पॉपकॉर्न खाने लगी। मुझे उसके ओछे संस्कार पर चिढ़ आने लगी थी। थोड़ी-सी भी लड़कियों वाली लाज-लज्जा आदि थी ही नहीं,बिल्कुल फूहड़ लग रही थी।
पहली फिल्म समाप्त हुई,उस समय रात के करीब ९ बज गए थे। मैंने टैब को बैग के अंदर रखा और खाने का टिफ़िन निकाला। मेरे घर में कोई खाना बनाने वाला या टिफ़िन सिस्टम नहीं रखा था,अतः अपने हाथों से रोटी-सब्जी बनाई थी। सोचा था कि बस का सफर है,इसलिए ६ रोटियां बनाई। सोचा मैं तो रात को ४ रोटी खाता हूँ,पर रात में कहीं भूख लग गई तब २ रोटी और खा लूंगा। मुझे क्या पता था कि विधि का विधान ही कुछ और ही है।
मैंने अपना टिफ़िन खोला,तो देखा कि वह युवती कनखियों से मेरे टिफ़िन की ओर ललचाई नज़रों से देख रही है। मैंने शिष्‍टतावश उस युवती को भी खाने के लिए प्रस्ताव दिया। अक्सर लोग ऐसी स्थिति में ना-नुकुर करते हैं,थोड़ी देर मनाने के बाद दो-चार कोर लेते हैं,पर लगता है वह इसी निमंत्रण के इंतज़ार के लिए बैठी थी। मेरा बोलना ही था कि वह एकदम से खाने के लिए टूट पड़ी। खाते-खाते मुझसे पूछा कि-खाना कौन बनाया है ?
मैंने कहा-मैंने बनाया है।
उसके बाद वह लगातार मेरे बनाए खाने का नुक्स निकालने लगी,पर उसका खाना कभी भी नहीं रुका था। खाना समाप्त होने के बाद उसने अपना निष्कर्ष सुना दिया कि,-लगता है कि आप अभी तक शादी नहीं किए हो,पर इस तरह का रद्दी खाना बनाने से तो अच्छा होता कि आप शादी कर लेते। और नहीं तो कोई अच्छा खाना पकाने वाला रख लेते।
मैं मारे शर्म के लाल हुए जा रहा था। मुझे उस युवती पर क्रोध तो आ रहा था,पर मैं अपने-आप पर नियंत्रण रखा हुए था। अचानक मेरे मुँह से निकल ही गया कि,-आप कहती हैं कि आपको खाना रद्दी लगा,पर मैंने देखा कि आपने तो एक टुकड़ा भी नहीं छोड़ा। ऊपर से आप मेरे हिस्से की भी रोटी खा गई और मैं ताकते रह गया।
मेरी बातें सुन लगता है उसे थोड़ा-सा भी बुरा नहीं लगा। वह हँसते-हँसते बोली,-आप तो क्या,अच्छे से अच्छे लोग मेरी तरफ ताकते रहते हैं। अभी मुझे इस सबकी आदत पड़ चुकी है,इसलिए मैं इन सब बातों का बुरा नहीं मानती हूँ।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कैसी ठेठ लड़की है। खाना खाने के बाद नींद आ गई थी,सो आँखें बंद कर सो गया। बस के हिचकोले और चलने की आवाज़ ने मुझे गहरी नींद के आगोश में धकेल दिया।
बस कंडक्टर के पुकारने की आवाज़ में मेरी नींद खुली तो देखा सुबह हो चुकी थी और मेरी मंज़िल आ चुकी थी। मेरी बाजू की सीट और पीछे की सीट खाली हो चुकी था। लगता था कि वह युवती और उसके माँ-बाप कहीं पहले ठहराव में उतर गए थे। मैंने अपना बैग उठाया तो उसमें एक कागज़ लगा हुआ था। लिखा हुआ था,-फिर मिलेंगे।
मैंने उस कागज़ को अपने पाकेट में रख लिया। बस से उतरने के बाद देखा,राजू मुझे लेने आया था। मैं उसके साथ उसके घर चला गया।
राजू बोला-तू रात भर सो नहीं पाया होगा,ऐसा कर नाश्ता कर के बिस्तर पर सो जा। मैं बैंक जाऊंगा, आज हाफ-डे है। दोपहर को हम दोनों एकसाथ खाना खाएंगे। फ़िर दोनों मिलकर आगे का प्लान बनाएंगे।
उस दिन शाम को राजू मुझे अपने होने वाली ससुराल के सामने छोड़ कर चला गया। मैंने घर के अंदर जाकर उसके होने वाले सास-ससुर से राजू की शादी की बात विस्तार में की। लगता है उन्हें पहले से ही सब कुछ पता था,इसीलिए उन्होंने मुझसे ज्यादा प्रश्न नहीं पूछे। मैं राजू की फोटो ले गया था,उसके पीछे उसकी सारी जानकारी लिखी हुई थी। उन्होंने शादी के लिए हाँ कर दी और बोले-शादी की तारीख अपने पंडित से पूछकर बताएँगे। घर में राजू की होने वाली बीवी का कोई अता-पता नहीं था और न ही उसकी कोई तस्वीर थी। खैर,मैं उन लोगों से यह बात पूछ नहीं पाया। सोचा जब राजू ने लड़की पसंद कर ही रखी है तो मेरे देखने और न देखने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है।
शादी की बात पक्की होने के बाद मैं उधर से निकलकर नजदीक के मॉल में पहुंचा,जहाँ राजू मेरा इंतज़ार कर रहा था। राजू मुझे एक रेस्तरां में ले गया। मुझे लेकर वो एक टेबल की तरफ बढ़ने लगा, जहाँ पर एक युवती बैठी हुई थी। रौशनी मद्धिम थी इसीलिए कोई भी चीज़ साफ़ नज़र नहीं आ रही थी। उस टेबल के पास जाकर राजू ने मेरे साथ उस युवती के पास बैठ गया। मैं उस युवती को देखकर चौंक गया,क्योंकि यह वही थी जो बस में मेरे बाजू में बैठकर आई थी और सारा रास्ता मुझे परेशान करती रही थी। मुझे देखते ही वह पहचान गई और जोर-जोर से हँसने लगी और राजू भी उसके साथ हँसते जा रहा था। खाना खाते-खाते पता चला कि राजू ने होने वाले बीवी को मेरे बारे में,किस बस से आऊंगा और यहाँ तक कि सीट नंबर भी बता दिया था। उसे अपने बड़े पापा और बड़ी माँ के साथ वापस लाना था,इसीलिए राजू ने मेरी ही बस में टिकट बुक करा दी थी। फिर क्या था,सारे रास्ते राजू की होने वाली बीवी मेरी खिंचाई करती रही थी। यह सुनने के बाद मैं भी बड़ी जोर से हँस पड़ा कि आसपास में बैठे लोग हमें पागल समझ कर घूरने लगे थे।
और फिर…, एक महीने के बाद राजू की धूमधाम से शादी हो गई।

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

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