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रात अमावस की काली

डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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जगमग जीवन ज्योति (दीपावली विशेष)….

रात अमावस की काली,
है घनघोर अन्धेरा छाया
दृश्य मनोरम देख धरा का,
अम्बर मन में सकुचाया।

जगमग-जगमग दीप जलें,
कैसी रात ये सुहानी आई
चाँद-सितारे तम में डूबे,
धरा खुद पर आज इठलाई।

दीपों की बारात सजी है,
और सजी रंगोली द्वारे
कहीं लटक रहे हैं तोरण,
स्वास्तिक बने हैं प्यारे।

कोई जला रहा है पटाखे,
कोई जलाए फुलझड़ियाँ
चहुँओर खुशहाली है छाई,
लगे रामराज की घड़ियाँ।

लक्ष्मी गणेश करें पूजन,
हम आरती थाल सजाएँ
दूरकर मन का अन्धियारा,
हम उर उपवन महकाएँ।

आज पतंगे वश में नहीं
दीया जले, देख भरमाए
मस्त मगन इत-उत डोले,
बावरा मौत को गले लगाए।

इस बार की खास दिवाली,
राम अपनी अयोध्या आए।
आओ हम सब मिलकर,
खुशियों के दीप जलाएँ॥