श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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चाहे जितना बड़ा संसार है,
क्यों ना भरा-पूरा परिवार है
लेकिन पति ही नहीं साथ है,
तो रिश्ते-नाते-सुख बेकार है।
लुटा हुआ है खुशी का बाजार,
बोलो सखी कैसे करूँ सिंगार!
अधूरे लगते हैं सब त्यौहार,
पिया के बिना सब है बेकार।
कहाँ ढूँढने जाऊँ साजन को,
कैसे सजाऊँगी मैं आँगन को
प्रेम की पाती अभी आई नहीं
पिया बिना जीया जाता नहीं।
खो गया है मन का माली मेरा,
खोज देना, एहसान होगा तेरा
जबसे गर्दिश ने आकर है घेरा,
हुई हालत जैसे साँप-सपेरा।
सूख रही मन की फुलवारी,
हुआ करती थी कभी न्यारी।
मुरझा गई फूलों की डाली,
क्योंकि, रूठ गया है माली॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है