कुल पृष्ठ दर्शन : 164

रूत सावन की

बबीता प्रजापति ‘वाणी’
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
******************************************

पावन सावन-मन का आँगन….

मन मयूरा नाच रहा,
देख घटा घनघोर
कोयल पपीहा तृप्त हुए,
नाच उठे मोर।

गहन अंधेरा घिर गया,
कीट पतंगे करते शोर
जुगनू फिर टिमटिमा उठे,
जैसे नवल हुई हो भोर।

बालक वृन्द तैरा रहे,
देखो, जल में नाव
वर्षा में है भीगते,
कहाँ ठहरते पाँव।

सजनी प्रेम में मग्न हो,
देख रही है राह
वर्षा की ये बूँदें,
और बढ़ाती चाह।

हाथ में हरी चूड़ियाँ,
सजनी का करें श्रृंगार।
सावन में मनभावन मिलें,
प्रेमानन्द का हो संचार॥