उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश)
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“कलम की जगह कम्प्यूटर कभी नहीं ले सकेगा बेटा,” दादा जी ने कहा और वे यह बात बताते समय एकदम भावुक हो गए। कहने लगे कि आजकल तो अधिकांश कार्य कम्प्यूटर से किया जा रहा है लेकिन कलम की बात ही कुछ और है! कलम से लिखते समय हमारी सुलेख प्रतिभा का निखार होता है। हमारे हाथ से लिखे हुए मोती जैसे अक्षरों को देखकर हमारा मन गदगद हो जाता है। मैंने पूछा कि दादा जी, आप जब पढ़ने जाते थे तो किससे लिखते थे और कैसे ?
फिर दादा जी ने बताया कि हमारे बचपन के किस्से बहुत अनोखे हैं।
अरे वाह, वो कैसे ? जरा बताइए न दादा जी!
फिर दादा जी कहने लगे, मैं जब पढ़ने जाता था तो नरकट की कलम से लिखता था। हमारे मोती जैसे अक्षरों को देखकर खुद हम भी मोहित जाते थे।
मैंने पूछा नरकट क्या होता है दादा जी ? दादा जी बोले-नरकट एक प्रकार की जंगली घास है जो काफ़ी लंबी-लंबी होती है। पहले यह हमारे घर के पीछे वाले तालाब के पास बहुत होती थी। हम सभी बच्चे उसे तोड़ कर ले जाते थे। कभी-कभी हमारे मास्टर जी ही हमें अच्छी कलम बना कर देते थे। वे नरकट को अपने चाकू से माठकर कलम बनाते थे। फिर तिरछी नोंक काट देते थे, जिससे लिखावट बहुत सुंदर होती थी। लिखने से हमारे हाथ की कला में भी निखार आता है और हम आत्मनिर्भर भी बनते हैं।
दादा जी ने बताया कि एक बार सुलेख प्रतियोगिता हुई, जिसमें मैंने भी भाग लिया था और मुझे प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ क्योंकि मेरी लिखावट बहुत सुंदर है। आज भी मैं लिखता हूँ तो देखकर लोग हक्का- बक्का रह जाते हैं। मैंने अपने सारे पत्रों का संग्रह किया है, जो आज एक बहुत मोटी किताब बन गई है। जब भी मेरा मन ऊब जाता है, तो मैं अपने पत्रों और लेखों को पढ़ने लगता हूँ। अपनी कलम के लेखों को देखकर मन हरा हो जाता है। कलम में बहुत ताकत होती है। कलम से किसी की जिंदगी या मौत भी लिखी जाती है। मैंने बचपन से ही कलम को महत्व दिया। इसी की वजह से मुझे नौकरी भी मिली। नौकरी के लिए परीक्षा देने गया तो मुझे उत्तर पुस्तिका दी गई तथा मेरे मित्रों को कम्प्यूटर मिला, क्योंकि मैंने यही चुना था। उन्होंने उत्तर कम्प्यूटर पर अंकित किया और मैंने कलम से लिखा। परीक्षा का परिणाम आया तो पता चला कि मैं ही प्रथम आया हूँ। मेरे सही उत्तर और सुंदर लिखावट की वजह से नौकरी पर रख लिया गया। मित्रों से पता चला कि जब वे लोग लिख रहे थे तो कई अक्षरों को कैसे लिखना है ?, कम्प्यूटर में सही ढंग से नहीं आ रहा था जिसकी वजह से वे लोग पीछे रह गए।
तब मुझे समझ में आ गया कि दादा जी की बात कही है कि, कलम की जगह कम्प्यूटर कभी नहीं ले सकेगा। अत:, हमें कलम के महत्व को समझना चाहिए और अपनी लेखन कला को निखारना चाहिए।
परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।