राधा गोयल
नई दिल्ली
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रोज-रोज मेरी अग्नि परीक्षा क्यों लेता भगवान ?
जबकि मेरी समस्याओं से नहीं है तू अनजान
यह भी तुझे पता है कि हम कभी नहीं घबराते,
बड़ी-बड़ी बाधाओं से भी हम टक्कर ले पाते
तेरी परीक्षाओं से मैं बना अधिक बलवान,
इन्हीं परीक्षाओं से शायद, हो मेरा भी नाम।
विश्वामित्र ने हरिश्चंद्र की अग्नि परीक्षा ली थी,
और इंद्र ने राजा शिवि की खूब परीक्षा ली थी
छोटी-मोटी नहीं थीं, वे विपदाएं बहुत भारी थीं,
लेकिन सारी विपदाएं उनके सम्मुख हारी थीं
हरिश्चंद्र ने सत्य की खातिर पत्नी- पुत्र को बेचा,
और स्वयं को भी उसने चांडाल के हाथों बेचा।
जो नृपति था कभी, उसे ऐसा दुर्दिन दिखलाया,
उसके पुत्र को कफन तलक भी, प्राप्य नहीं हो पाया
क्योंकि सत्यवादी था वह, और धर्म यही था उसका,
हर शव पर कर वसूलना है, यही काम था उसका
मन से व्यथित, कर्म से बंधित, कैसे क्या कर पाता ?
कैसे-कैसे नाच नचाता, तू भी भाग्यविधाता।
पत्नी तारा ने अपनी आधी धोती को फाड़ा,
उसे उढ़ा शव पर, आधी से निज लज्जा को ढाँपा
राजा शिवि की इन्द्र, अग्नि ने ली थी अग्निपरीक्षा,
शरणागत वत्सलता के चर्चे सुन जागी इच्छा
एक कबूतर की रक्षा हित शिवि का कृत्य देखकर,
निज अंगों की भेंट चढ़ाई थी शिवि ने खुश होकर।
स्तब्ध रह गए इन्द्रदेव और अग्निदेव दोनों ही,
कटे अंग पर हाथ फिराया, अंग जुड़े सारे ही
जिन-जिन की भी अग्नि परीक्षा अब तक होती आई,
उन लोगों की महिमा, सारे जग ने मिलकर गाई।
मेरी अग्नि परीक्षा तू जितनी लेगा भगवान,
उतना ही होता जाऊँगा ज्यादा शक्तिमान॥
