विश्व बाल दिवस स्पर्धा विशेष………..
विश्व बाल दिवस पर हम सब,
बच्चों के लिये कुछ कर जायें।
जीवन सार्थक तभी होगा जब,
पुण्य कार्य कुछ हम कर जायें।
कूड़े में बचपन रोटी ढूंढे
२ रोटी हम उन्हें थमा दें।
सर्दी गर्मी जो नँगे फिरते,
उन्हें तन ढकने को कपड़े दे दें।
क्या लेकर हम आये थे जग में,
क्या लेकर हम जायेंगे।
कुछ ऐसा कर जायें यहां पर,
तब सभी पुष्प मुस्कायेंगे।
भीख मांगते हैं जो बच्चे,
उनके हाथ में कलम थमा दें।
नई रोशनी जीवन में उनके,
आओ हम-तुम मिल कर भर दें।
इन अनाथ बच्चों पर हम-तुम,
थोड़ा अपना प्यार लुटा दें।
पढ़ा-लिखा कर उन सबको ही,
देश का अच्छा नागरिक बना दें।
विश्व बाल दिवस पर हम सब,
आओ ऐसा कुछ कर जायें।
नई योजना बन जायें ऐसी,
रोते बच्चे भी हँस जायें।
कुपोषण से मरते जो बच्चे,
उनको अच्छी खुराक दिला दें।
हर देश की सरकारों का,
बचपन पे भी ध्यान दिला दें।
विश्व में बचपन होगा स्वस्थ तो,
बड़े हो के अच्छा सोचेंगे।
आयेगा देश का भार कंधों पर,
तो बीज प्रेम के वो बोयेंगें॥
परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम ‘उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है।आपकी लेखन विधा कविता,गीत,कहानि और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान, महिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़ल, कहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैl साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।श्रीमती परमार की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आती रहती हैंl