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लिया आतंक मिटाने व हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का संकल्प

आगरा (उप्र)।

पहलगाम की आतंकी घटना को लेकर पत्रिका ‘संस्थान संगम’ और प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी महासभा (जबलपुर) के संयोजन में चेतना सभागार (आगरा) में ‘हिंदी कवियों की हुंकार’ कार्यक्रम हुआ। मुख्य अतिथि कवि सोम ठाकुर ने घटना की तीव्र भर्त्सना करते हुए कविता के माध्यम से जन-मन में हुंकार भरने की बात कही।
सभा के संस्थापक कवि संगम त्रिपाठी ने इस मौके पर कहा कि कि राष्ट्रभाषा न बन पाने की पीड़ा हर हिंदी प्रेमी को है, अतः इस दिशा में ठोस निर्णय लिया जाना चाहिए। डॉ. कुसुम चतुर्वेदी ने अध्यक्षीय उद्वोधन में हुंकार भरते हुए कहा “यह कैसी क़त्लेगारत, यह कैसा ख़ून-खराबा, मातम में बदल डाली, क्यों लहलहाती बगिया।” संपादक अशोक अश्रु ने “तेरे लिए हम आग के गोले हैं, रोष से भरे दहकते शोले हैं।”, कवि प्रेम रजावत ने “जागो-जागो भारतवासी, समय नहीं है सोने का। बदला लेना होगा मिलकर, छब्बीस के खोने का।” की प्रस्तुति दी।
इस अवसर पर राज चौहान और डॉ. शशि गोयल द्वारा डॉ. कुसुम चतुर्वेदी एवं प्रो. ठाकुर का सारस्वत सम्मान किया गया।
समारोह का शुभारंभ हरीश भदोरिया ने सरस्वती वंदना से किया। आयोजन में पहलगाम हमले में हताहत हुए भारतीयों को श्रद्धांजलि दी गई, साथ ही यह अपील भी की कि धर्म, जाति, प्रांत और भाषा को भूलकर सभी को एक होकर आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए राष्ट्र नायकों का समर्थन करना चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन सुशील सरित ने किया। धन्यवाद श्रीमती गायत्री देवी ने माना।