कुल पृष्ठ दर्शन : 54

You are currently viewing वक़्त के साथ

वक़्त के साथ

धर्मेंद्र शर्मा उपाध्याय
सिरमौर (हिमाचल प्रदेश)
*******************************************************

है वक़्त नहीं कि कुछ कहा जाए,
तो वक़्त यही कि सब कुछ सहा जाए
है वक़्त वही कि सब मिटा दिया जाए,
वो वक़्त नहीं जिसे बदल दिया जाए।

है वक़्त के लिए कभी हारना भी जरूरी,
है अपने-आपको कभी मिटाना भी जरूरी
है दु:ख-कष्ट को कभी अपनाना भी जरूरी,
है उस वक्त को कभी अपनाना भी जरूरी।

अपने लिए नहीं, अपनों के लिए ही सही,
वक़्त निकाल लो कभी-कभी यारों के लिए ही सही
वक़्त के दु:ख को जो पी ले औरों के लिए ही सही,
वक़्त के गम को भी जो सह ले, जिंदादिल है वही।

वक़्त में है सिंहासन पलटने का दम,
वक़्त में है राजा को रंक बना देने का दम
वक़्त तेरा भी आएगा एक दिन तो क्या है गम,
वक़्त सदा एक-सा है यह है केवल तेरा भ्रम।

वक़्त ने बड़ों-बड़ों का मान घटाया,
रावण कंस दुर्योधन का अभिमान मिटाया
वन-वन में भटके हुए को सिंहासन दिलाया,
वक़्त ने झूठे-मक्कारों का नामो-निशान मिटाया।

वक़्त को वक़्त से, वक़्त के लिए समझना जरूरी,
वक़्त को वक़्त पर, अपना काम करने देना भी जरूरी।
वक़्त-वक़्त पर अपना जबाव देता भी जरूरी,
है वक़्त-वक़्त के साथ बदलना भी जरूरी॥