डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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नारी से नारायणी (महिला दिवस विशेष)….
कौन-सी गाथा तेरी छोडूं,
मैं कौन-सी गाथा गाऊँ
सब बढ़कर एक से एक,
है नारी तेरे रूप अनेक।
कैसे भूलूँ भरी सभा में,
केश पकड़ लाई गयी थी
धोए थे जब केश लहू से
तब मन को शांति आई थी।
प्रेम दीवानी मीरा बनकर,
विष का प्याला पी जाती है
पतिव्रत धर्म निभाने को,
सीता वन-वन ठोकर खाती है।
कभी रसोई तक थी सीमित,
अन्तरिक्ष में धाक जमाई है।
जहां-जहां पुरुष जा पहुँचे,
अब तुमने भी सेंध लगायी है।
शमशानों तक जा पहुँची,
अब मुखाग्नि तुम देने को
वक्त के साथ तत्पर रहती,
हर वक़्त नया कुछ करने को।
विपदाओं को सहन करती,
प्रकृति सौंदर्य बिखेरती है
तू भी सहती कष्ट अनेक,
जग सृष्टि का भार उठाती है।
चटक रंगीले आँचल से तू,
सिर ढककर मान बढ़ाती है
कभी बनाती उसको परचम,
नई-नई गाथा गढ़ लेती है।
तेरे बिन संसार की रचना,
अकल्पनीय और अधूरी है।
तू कोमल है कमजोर नहीं,
जननी का सम्मान जरूरी है।
अमृत पय उर में तू समेटे,
प्रकृति का उपहार मिला।
शिशु प्राण की रक्षा हेतु,
एक अद्भुत अनुदान मिला।
हे नारी तुम देवी स्वरूपा,
तुम्हीं आदी तुम्हीं अनन्ता।
तुम्हीं ईश्वर की जननी है
तू नारी से नारायणी है॥