रश्मि लहर
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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मौन…,
सिन्दूरी उत्पीड़न से
अनुभूतियाॅं कराह उठीं
स्त्री के सपनों के
विच्छेदन पर,
तर्क तिलमिलाए।
इच्छाओं के विखंडन से,
ज़िद्दी होती गई उनकी
वैचारिक दृढ़ता
नहीं छीन पाए वे,
उनकी जुझारू
क्षमताओं को।
चिंतित हुए सुनकर,
उनकी
अट्टहासित गर्जनाओं को
वे चल पड़ीं दुरूह पथ पर
नंगे पाॅंव!,
ठुकराते हुए अपनों की
छलावे भरी
लुभावनी छाॅंव।
गठबंधन हो गया,
भावों के क्षणिक उद्वेलन से
उनकी कर्मठ कल्पनाओं का,
सुनो..
उनमें हिम्मत है
बेहिसाब।
वे लिखकर रहेंगी
अपने शोषण का सारा
हिसाब-किताब!!