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‘विक्रम’ से हौसलों की उड़ान भरता भारत

ललित गर्ग

दिल्ली
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भारत ने तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक नया इतिहास रचते हुए अपना पहला पूर्णतया स्वदेशी ३२-बिट माइक्रो प्रोसेसर तैयार कर एक तकनीकी क्रांति को आकार दिया है। यह उपलब्धि न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि राष्ट्रीय गौरव का भी प्रतीक है। भारत ने इस तकनीकी क्रांति की तरफ कदम बढ़ते हुए आत्मनिर्भर एवं स्वदेशी तकनीकी प्रगति को नये आयाम दिये हैं। पहला पूर्णतः स्वदेशी ३२-बिट माइक्रो प्रोसेसर विकसित करने की उल्लेखनीय उपलब्धि के लिए ‘इसरो’ की सेमीकंडक्टर प्रयोगशाला साक्षी बनी है। पहली मेड इन इंडिया चिप का उत्पादन गुजरात के साणंद स्थित पायलट प्लांट से शुरू होगा। केंद्र की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के अंतर्गत १८ अरब डॉलर से ज्यादा के कुल निवेश वाली १० सेमीकंडक्टर परियोजनाएं देश में चल रही हैं। अब भारत को इस तरह की तकनीक के लिए विदेशों के पराधीन नहीं होना होगा। इस कड़ी प्रतिस्पर्धा वाले चिप क्षेत्र में भारत की यह दस्तक उत्साह जगाने वाली है। निश्चित ही इससे भारत की ताकत बढे़गी और तकनीक के साथ-साथ यह आर्थिक विकास को तीव्र गति देगा। फिलहाल आधुनिक समय की इस जादुई चिप के उत्पादन में ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान, चीन और अमेरिका जैसे देशों का वर्चस्व है। विशेषतः भारत की यह जादुई उपलब्धि अमेरिका को आइना दिखाने वाली है, यानी ट्रम्प को एक बड़ा झटका है।
भारत इस क्षेत्र में एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी बनने के लिए उत्सुक है। तभी सेमीकॉन इंडिया-२५ के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वह दिन दूर नहीं है, जब भारत की सबसे छोटी चिप दुनिया में बड़े बदलाव की नींव रखेगी। हालांकि, इस राह में अभी कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन उम्मीद है कि ६०० अरब डॉलर वाले वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग में भारत की हिस्सेदारी आने वाले वर्षों में ४५-५० अरब डॉलर की हो सकती है, जिससे भारत अनेक मोर्चें पर सफलता के परचम फहराएगा। इस चिप को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की अर्धचालक प्रयोगशाला ने अभिकल्पित किया है और इसे ‘विक्रम’ नाम दिया है। यह अंतरिक्ष-मानक सूक्ष्म प्रोसेसर है, जो मुख्यतः अंतरिक्ष अभियानों और रॉकेट प्रणालियों में प्रयोग के लिए तैयार किया गया है। इसरो ने सेमीकंडक्टर प्रयोगशाला चंडीगढ़ के साथ मिलकर २ स्वदेशी ३२-बिट माइक्रो प्रोसेसर ‘विक्रम ३२०१’ और ‘कल्पना ३२०१’ विकसित किया है।निश्चित ही इससे अमेरिका हिला है और दुनिया भारत की ताकत से रू-ब-रू हो रही है।
अब तक भारत को अनेक जटिल अंतरिक्ष अभियानों के संचालन हेतु विदेशी सूक्ष्म-प्रक्रमकों और अर्धचालक पट्टिकाओं पर निर्भर रहना पड़ता था। यह विदेशी निर्भरता न केवल आर्थिक दृष्टि से बोझिल थी, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी चुनौतीपूर्ण थी। ‘विक्रम’ के निर्माण से भारत ने निर्भरता की इन बेड़ियों को तोड़ा है और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में सशक्त कदम बढ़ाया है। निस्संदेह, भारत को चिप उत्पादन क्षेत्र में एक दिग्गज देश बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी निरन्तर प्रयासरत हैं। यह सुखद ही है कि भारत में चिप उत्पादन परियोजनाओं में जापानी निवेश बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राएं भारत को ऐसे ही विकास के नए शिखरों पर आरोहण कराने का सशक्त माध्यम बन रही है।
निश्चित रूप से भारत चिप उत्पादन के वैश्विक महत्वाकांक्षी अभियान की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ सकता है। दरअसल, डिजिटल डिवाइसों का मस्तिष्क कहा जाने वाला सेमीकंडक्टर कंप्यूटर, मोबाइल, राउटर, कार, सैटलाइट जैसे उन्नत डिजिटल डिवाइस तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन उपकरणों की कार्यकुशलता उन्नत चिप की ताकत पर निर्भर करती है। साधारण शब्दों में कहें चिप पतली सिलिकॉन वेफर पर बने लाखों-करोड़ों ट्रांजिस्टरों का संजाल है। जो कंप्यूट करने, स्मृति प्रबंधन व संकेत प्रोसेस करके उपकरण को उन्नत बनाती है। उम्मीद है कि भारत की स्वेदशी चिप इस साल के आखिर तक बाजार में आ सकेगी। इसका असर जियोपॉलिटिक्स पर तो होगा ही, नए रोजगार सृजन का वातावरण भी बनेगा, भारत तकनीकी विकास के नए आयाम उद्घाटित करते हुए विश्व को अचंभित भी करेगा। निश्चय ही भारत यदि अनुसंधान-विकास व व्यापार सुगमता की स्थितियाँ निर्मित कर लेता है तो हमारी सेमीकंडक्टर आयात के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता कम हो सकती है। इससे हम वैश्विक दबाव से मुक्त होकर अपनी आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत बना सकते हैं।
इस उपलब्धि का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके लिए आवश्यक रूपांकन, निर्माण और परीक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रिया भारत में ही की गई है। अर्थ यह हुआ कि भारत अब केवल प्रौद्योगिकी का उपभोक्ता नहीं, बल्कि उसका सर्जक भी है। यह अभिकल्पना केवल चिप का निर्माण नहीं है, यह भारत की वैज्ञानिक प्रतिभा, उसकी दूरदृष्टि और आत्मविश्वास का परिचायक है।
भारत ने जिस आत्मविश्वास के साथ इस दिशा में पहला कदम रखा है, वह आश्वस्त करता है कि भविष्य में हम और भी उन्नत सूक्ष्म-प्रक्रमक तैयार करने में सक्षम होंगे। ‘विक्रम’ केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है, यह भारत की स्वाभिमानी यात्रा का घोष है। यह घोषणा है कि अब भारत केवल विज्ञान का अनुयायी नहीं बल्कि विज्ञान का निर्माता और मार्गदर्शक बनने की ओर अग्रसर है।