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विचारों और संस्कारों से भटकती युवा पीढ़ी

प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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आज की युवा पीढ़ी फिल्मी सितारों और गीत-संगीत से काफी प्रभावित है। जिसे देखो वह फिल्मी गाने गुनगुनाते हैं। तब अक्सर मेरे मन में यह प्रश्न उठता है आखिर क्यों ? माना कि फिल्मी गाने सुनना कोई बुरी बात नहीं है, पर क्या आज की युवा पीढ़ी फिल्मी गीतों के अलावा भक्ति, आस्था से जुड़े भजन, श्लोक नहीं सुन सकते हैं ? आखिर क्यों, कौन है इन सबका जिम्मेदार…? और कोई नहीं। जिम्मेदार हैं तो माता-पिता। बच्चों के प्रथम गुरु उनके माता-पिता ही होते हैं। फिर वह समाज में समाज द्वारा सीखता है, तो विद्यालय में शिक्षक द्वारा, परंतु सोचकर बहुत अफसोस होता है कि, आज के बच्चे-युवा वर्ग अपनी संस्कृति, आस्था और संस्कार से वंचित होता जा रहा है। बच्चों से पूछा जाए कि, रामायण और महाभारत के रचयिता कौन हैं ? त्यौहार क्यों मनाए जाते हैं ? आदि की सभी जानकारी बच्चों को नहीं है।
बड़ा सवाल है कि क्या भजन सुनना, आस्था से जुड़ना केवल बुजुर्गों का ही काम है ? यह सोच गलत है। देश की अधिकतर युवा पीढ़ी-युवा वर्ग हमारी भारतीय सभ्यता, संस्कृति, संस्कार से वंचित है, इसलिए सभी को जागृत करने की आवश्यकता है, यह बताने की आवश्यकता है। फिल्मी कलाकारों के नाम, फ़िल्मों के नाम ये सब उन्हें पता होता है, लेकिन हमारे वेद, पुराण, भागवत गीता, भजन, श्लोक सभी की ज्यादा जानकारी नहीं है, जबकि बच्चों को कम से कम मूलभूत जानकारी तो होनी ही चाहिए।
आज के युवा का सोशल मीडिया की तरफ काफी ज्यादा झुकाव है। नई-नई तकनीकी के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है। व्हाट्सएप और फेसबुक जैसी जगह पर उनका रुझान ज्यादा बढ़ गया है। सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल बच्चों के लिए लाभप्रद साबित हो सकता है, पर वो जो उसका इस्तेमाल बखूबी करते हैं। अपने विचारों का सही रूप से आदान-प्रदान करना उनकी जिम्मेदारी है। अपनी भारतीय संस्कृति, वेद, पुराण आदि की जानकारी नई तकनीकी से भी ले सकते हैं।
हाल ही में ‘पठान’ फिल्म आई, जिससे युवाओं में काफी धूम मच गई। जितने मन से बच्चे फ़िल्मों को देखते हैं, उतने मन से आस्था चैनल नहीं देखते। इसके लिए हमें उनमें रुचि लाने की आवश्यकता है। एक फिल्म आई थी ‘राम सेतु’, जो ज्यादा नहीं चली। य़ह फिल्म भगवान राम के सेतु की तलाश पर आधारित थी, पर ज्यादा नहीं चली। कारण कि आज के युवा वर्ग को यही नहीं पता कि आखिर राम सेतु क्या है ? जब ‘रामायण’ ही पता नहीं होगी तो फिल्म क्या समझ में आएगी ? वजह यही कि आज के बच्चों-युवकों को हमारी भारतीय संस्कृति, ऋषि-मुनियों, महान संतों, महान पुरुषों और आचार्यों के बारे में जानकारी नहीं है।
ऐसे में आज के युवाओं को भारतीय संस्कृति-सभ्यता, संस्कार से परिचित कराना अति आवश्यक हो गया है। माता-पिता का कर्तव्य है कि जब बच्चे इस उम्र में आ जाएं, उससे पहले ही इन्हें गलत और सही के बीच की रेखा को समझा दें। आज की युवा पीढ़ी जब कल देश का सुनहरा भविष्य बनेगी, तो उन्हें सही जानकारी और प्रोत्साहन दें।

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