सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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हमारे सपनों का घरौंदा जो मेहनत से बनाते हैं,
बड़ी-बड़ी इमारतों को धरती पर साकार करते हैं
कागज़ पर अदभुत-सा नक्शा तो आप बनाते हो,
पथरीली जमीन पर उसे श्रमिक आकार देते हैं।
बारिश में भीगते तल्लीन से लगे रहते हैं,
मौसम की मार से बेखबर कर्म करते हैं
कर्म के प्रति उनकी ऐसी जुझारू प्रवत्ति,
जैसे कोई योगी तपस्या में लीन होते हैं।
पहाड़ों पर सुगम सुंदर रास्ते बनाया करते हैं,
नदियों को जोड़ पुलों का निर्माण करते हैं
ऊँचाई से घबराते जिनको तनिक नहीं देखा,
वो जीवट पुतले जंगल को रिहायशी बनाते हैं।
बदन से बहते हुए पसीने की इज्जत होनी चाहिए,
धूप से जलते कुछ सपनों की परवाह होनी चाहिए।
कठिन श्रम जहां उनका नाम तक दर्ज नहीं होता,
सम्मान देकर उनका आभार व्यक्त होना चाहिए॥