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व्यवहारिक हिंदी का प्रयोग १६० देशों में

प्रो.महावीर सरन जैन
बुलंद शहर(उत्तरप्रदेश)
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भाषा….

आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि भारतीय चिन्तन एवं पाश्चात्य चिंतन में मूलभूत अन्तर है। भारतीय चिन्तन अभेदात्मक, समन्वयात्मक,सहयोगात्मक और पदार्थ,प्राण,मन, विज्ञान से भी परे आत्म चेतना का साक्षात्कार है तथा सांस्कृतिक चेतना की दृष्टि से पूरी वसुधा को अपना कुटुम्ब मानने में विश्वास करता है (वसुधैव कुटुम्बकम्)। भारतीय परम्परा मानती है कि ईसा से ६ हजार वर्ष पूर्व जब सम्पूर्ण पृथ्वी लोक में जल-प्रलय हुई थी तो भारतीय परम्परा पाश्चात्य चिन्तन की तरह डार्विन के तथाकथित विकासवाद में विश्वास नहीं करती कि अवनत जीवों से मनुष्य का विकास हुआ है। भारतीय परम्परा मानती है कि जल-प्रलय के बाद भारत के हिमाचल प्रदेश में मनाली से २० मील दूर की पहाड़ी पर १ पुरुष बच गया था। सृष्टि में १ नारी भी बच गई थी,और दोनों ने मिलकर नया भारत महाद्वीप बनाया।
पाश्चात्य चिंतन भेदात्मक,विश्लेषणात्मक,तर्क प्रधान एवं जीवन शैली भौतिकवादी रही है। अपनी भेदात्मक,विश्लेषणात्मक दृष्टि के कारण जब पाश्चात्य भाषा वैज्ञानिक भारतीय भाषाओं का अध्ययन करते हैं तो परस्पर भेद दिखाने पर बल देते हैं। उदाहरण के लिए हिंदी क्षेत्र की उपभाषाओं को भाषा का दर्जा दे देते हैं। इसी प्रकार हिन्दी एवं उर्दू में केवल लिपि का अंतर है। दोनों एक भाषा की २ शैलियाँ हैैं। जिस प्रकार चीन बहुभाषिक देश है,उसी प्रकार भारत बहुभाषिक देश है। जिस प्रकार मंदारिन (चीन)की अनेक परस्पर आंशिक बोधगम्य उपभाषाओं के स्तरों पर अध्यारोपित व्यवहारिक मंदारिन के माध्यम से सम्पूर्ण चीन के नागरिक संंवाद कर पाते हैं,उसी प्रकार हिन्दी की अनेक एकतरफा बोधगम्य उपभाषाषाओं के स्तरों पर अध्यारोपित व्यवहारिक हिन्दी के माध्यम से सम्पूर्ण भारत के नागरिक संवाद कर पाते हैं।
वर्तमान में विश्व में अंग्रेजी मातृभाषियों की संख्या ३ करोड़ ५९ लाख ७० हजार है। विश्व में व्यवहारिक हिन्दी मातृभाषियों की संख्या ७ करोड २७ लाख ७० हजार है। इसमें हिंदी उर्दू और हिन्दी क्षेत्र की एकतरफा बोधगम्य उपभाषाएँ समाहित हैं। व्यवहारिक हिन्दी का प्रयोग विश्व के कम से कम १६० देशों में होता है। यह भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान काल में आधुनिक भारतीय भाषाएँ एवं आधुनिक भारतीय तथाकथित द्रविड़ भाषाओं में एकता है,अपेक्षाकृत आधुनिक यूरोपीय भाषाओं के (देखें-भारत की भाषाएँ एवं भाषिक एकता तथा हिन्दी,आईएसबीएन ९७८-९३-५२२१-०८५-५)।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)