संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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इन दिनों मैं अपने गाँव में हूँ। गाँव की प्रकृति का नजारा बड़ा मनोरम और लुभावन बना हुआ है।धुंआधार बारिश के चलते वसुंधरा मानो जैसी दुल्हन-सी सजी-धजी है। इन दिनों फसलों की कटाई का मौसम चल रहा है, तो विस्तीर्ण फैले खेतों में बाजरे की पकी फसल बड़ी ही मस्ती से झूम रही है। मक्का की फसलों ने अपने-अपने भुट्टे के शिशु कमर पर उठा रखे हैं, तो धान की फसल से उठती सौंधी सुगंध ने पूरे वातायान को मन्त्रमुग्ध किया हुआ है। पकी हुई सोयाबीन के स्वर्णिम खेतों के सौंदर्य ने जमीं पर गहने ही गहने पहना दिए हैं। फसलों को छूकर सरसराती पवन बड़े रहस्यमय ढंग से गुजर रही है। सारा समां चैतन्य से ओत-प्रोत, सौंदर्य से लबालब और रसभरित बन पड़ा है।
ये ‘कोजागिरी पौर्णिमा’ के आस-पास के दिन हैं। रात के लगभग ३ बज रहे हैं। नींद से जागकर नदिया किनारे आकर मैंने बहते जल को देखा और वहीं ठिठक गया। ओह! कितना लुभावन दृश्य है। पश्चिम की देहरी से थोड़ी दूरी पर ठहरा हल्दीया चाँद अपने सम्पूर्ण ओज से सृष्टि पर चन्दन लुटा रहा है। बाँध से उछलते नदिया के पानी पर फैली चंद्र किरणों ने पानी के सैलाब को रुपहला बना दिया है। ऐसा लग रहा है, मानो नदिया में पानी नहीं;चाँदी बह रही है। नदिया अपनी मस्ती में गाए जा रही है और दूर-दूर तक फैले सघन तमस में जुगनू ऐसे टिमटिमा रहे हैं, जैसे आकाश तारों सहित जमीं पर उतर आया हो…। इन चमचमाते जुगनुओं ने स्तब्ध समां को और भी दिलकश बना दिया है। सभी सितारे पंख लगाकर रह-रहकर बिखेरती नीली रौशनी बिखेरते हुए कितने दिलचस्प ढंग से वातायन क़ो आलोकित कर रहे हैं। जुगनू, तितलियाँ और मधुरानियाँ स्वस्थ पर्यावरण के द्योतक हैं। ये तीनों कीटों की आबादी जितनी ज्यादा, उतना ही पर्यावरण सुदृढ होता है, पर दुर्भाग्य से इन दिनों इनकी संख्या लगातार कम और कमतर होती जा रही है।
हल्दी से सने चाँद की बादलों के साथ लुका-छिपी चल रही है। बादल जब उभरकर आते, तो चाँद किसी शर्मीली दुल्हन-सा अपना ओजस्वी चेहरा ढक लेता। दूसरे ही क्षण घूँघट उठाकर जमीं पर चन्दन बरसाता। मन्त्रमुग्ध होकर मैं उस वातायान में ऐसे घुल गया, जैसे किसी चम्पा की गंध हवाओं में घुल जाती है। मैं अपने-आप में खोता हुआ नदिया किनारे खड़े होकर स्वर्ग क़ो महसूस कर रहा हूँ। हल्दीया चाँद धीरे-धीरे बड़ी नजाकत के साथ पश्चिम की देहरी पर उतरता जा रहा है। इस स्वर्गीय समां ने एक नया सौंदर्यबोध मेरे अंदर पनपा दिया है। यह तन्मयता की पराकाष्ठा है। इस रमणीयता में मैं स्वयं को घुलाता जा रहा हूँ। उतरते शरदिया चाँद तले एक नया, अजीब और रहस्यमय अहसास पनपता जा रहा है। एक ठंडी पवन का झोंका सरसराता हुआ मेरे बदन को छूकर निकला, तब प्राची पर भोर के स्वर्णिम हस्ताक्षर होने लगे थे, और पंछियों के स्वर उभरने लगे थे।
परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।