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शिक्षक ही रखता है़ पटरियों की नींव

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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शिक्षक:मेरी ज़िंदगी के रंग’ स्पर्धा विशेष…..

ज़िंदगी के रंग में शिक्षक का पीताबंर रंग आकाश में स्थित सूरज,चाँद,तारों व अन्य ग्रहों के संग सदैव सुख-दु:ख के बादलों की तरह छाया रहा। कभी सप्त-ऋषि सा दिखाई देता रहा तो कभी इन्द्र बन तीव्र अश्रुओं की वर्षा में अवगुणों को जीवन से दूर रखने में सहायक भी रहा। जब कभी परिस्थितियों से उत्पन्न निराशा का तनाव बदरंग-सा उभरा,तब-तब शिक्षक से सुने शब्दों ने मानसिक दृढ़ता प्रदान करने में ढाल का कार्य किया। जीवन में जहाँ संघर्षों की यात्रा के अनेक पड़ाव अनायास आते हैं,वहां सकारात्मक विचारधारा ज्ञान के सागर में डूबते हुए समस्त शिक्षकों की छवि मन-मस्तिष्क में उमड़-घुमड़ कर वार्तालाप करने लगती है। उनके द्वारा दिए गए शब्द-ज्ञान के सागर में जीवन को सही दिशा निर्धारण हेतु मोती बीनने लगती है।
शिक्षक का जीवन किसी तपस्या से कम नहीं होता है। यह भी उतना सच है कि,शिक्षक द्वारा दी गई शिक्षा का पालन कोई भी ज्यों का त्यों अपने जीवन में कर सके। जहाँ तक देश और काल वातावरण की परिस्थितियों के अनुसार जीवनयापन करना जीवन की एक परिपाटी है,वहीं भविष्य को बेहतर बनाने की शक्ति का श्रेष्ठ साधन शिक्षा है। इस शिक्षा के उचित उपयोग का मार्गदर्शन कराने वाला ‘शिक्षक’ के सिवाय कोई ओर हो ही नहीं सकता! तभी तो संसार के समस्त शिक्षाविदों ने शिक्षक को ईश्वर से अधिक मान-सम्मान प्रदान किया है।
समकालीन समय में पारम्परिक शिक्षक, व्यावसायिक शिक्षक व डिजिटल शिक्षक स्वरूपों के दर्शन होते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली का क्षेत्र जैसे विकसित हो रहा है,वैसे-वैसे भिन्न-भिन्न प्रकार के शिक्षकों का प्रचलन उपलब्ध है। हमारे समय में विशालकाय बरगद के वृक्ष के नीचे विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। अब विज्ञान के प्रभाव से इस बढ़ते युग में विद्यार्थियों के लिए आज आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित बड़ी इमारतों की पाठशालाएँ व विश्वविद्यालय उपलब्ध हैं। आज मैले-पाबंद लगे वस्त्रों की जगह शाला गणवेश समदृष्टि का समर्थन करती है। विज्ञान के नए-नए आविष्कारों ने प्राचीन शिक्षा प्रणाली के स्वरूप को पूर्णतया परिवर्तित कर दिया है।
सभी शिक्षक अपने-अपने कार्यक्षेत्र में कर्तव्यनिष्ठ व ज्ञान प्रतिभा के मालिक हों,ऐसा भी विचार करना कठिन जान पड़ता है। स्मरण है कि,अपने विद्यार्थी जीवन में जब हमारी कक्षा के एक अत्यधिक शरारती विद्यार्थी जिसने सभी विषयों के शिक्षकों की नाक में दम कर रखा था,ने नए शिक्षक को भी उसी तरह तंग करना आरंभ किया,जैसे-कक्षा में सीटी बजाना,सहपाठी की पुस्तक खींच लेना, पढ़ाते समय शिक्षक की बात को गलत प्रश्न कर उलझाने का प्रयत्न करना शामिल था। नए शिक्षक ने प्रधानाचार्य से उस विद्यार्थी की शिकायत अन्य शिक्षकों भाँति न की,न ही उसको डॉंट या खींचने भरे संवाद से संबोधित किया। एक दिन नए अध्यापक ने कक्षा में सब विद्यार्थियों से कहा कि मेरे द्वारा अध्याय पढ़ाने के पश्चात सब विद्यार्थियों को अपने विचारों के साथ कुछ पंक्तियाँ कहनी होंगी। इसके अंक अलग से परीक्षा अंक में शामिल किए जाएँगें। तुरंत ही आदतन वह विद्यार्थी खड़ा हो नए अध्यापक के सम्मुख रौबीली आवाज में कहने लगा,-‘क्या अभी भी हम दूसरी-तीसरी कक्षा के विद्यार्थी हैं,यह बात हम सीनियर कक्षा के
विद्यार्थियों पर किसी नियम के अंतर्गत नहीं आती है।’
यह सुन अध्यापक ने सब विद्यार्थियों से पूछा,-‘क्या आप सबको भी शिक्षा प्रणाली संबंधी व शिक्षा संस्थान संबंधी नियमों काी जानकारी है ?
कक्षा के विद्यार्थी एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। तत्पश्चात उस शरारती विद्यार्थी को अपने पास बुलाकर जागरूक व सतर्क विद्यार्थी के रूप में कह शाबाशी दे कहा,-‘तुम बहुत बुद्धिमान हो। कल से तुम सबसे पहले हमारी शिक्षा प्रणाली संबंधी एक- दो नियमों के बारे में समस्त विद्यार्थियों को बताओगे।’ नए अध्यापक के इस प्रयोग ने उस विद्यार्थी के व्यवहार को एक कुशल साधक की तरह बदल दिया,जो वार्षिक परीक्षा में अच्छे अंक से उत्तीर्ण कर सब अध्यापकों व सहपाठियों को चौंकाने जैसा साबित हुआ ।
सच में,शिक्षक ईश्वर की भाँति सर्वज्ञ ज्ञान के अधिष्ठाता और सूक्ष्मदर्शी होते हैं। इस बात का अनुभव मुझे तब हुआ जब हमने भी कुछेक आस-पड़ोस के विभिन्न जाति,धर्म,समुदाय के बच्चों को पढ़ाने का प्रयास किया। ज्ञात हुआ कि शिक्षक को कर्तव्यनिष्ठता के साथ प्रत्येक विद्यार्थी के गुण-अवगुण,रुचि व घर-परिवार की जानकारी अवश्य होनी चाहिए। शिक्षक विद्यार्थी के जीवन का निर्माता व मार्गदर्शक है। वह राष्ट्र,समाज,परिवार , निजता के भविष्य का भी निर्धारणकर्ता भी है। किसी भी विद्यार्थी पर शिक्षा को थोपा नहीं जा सकता,बल्कि उसके समूचे व्यक्तित्व को परख कर निखारने का दायित्व शिक्षक की भूमिका का भी प्रतिपादन करता है। अत : शिक्षक ही विद्यार्थी की वर्तमान यात्रा में सामाजिक व मानसिक दो पटरियों की नींव रखता है जिस पर विद्यार्थी नि:संकोच जीवनभर सरपट गति से अपने आस-पास फैली नकारात्मकता को चीरते हुए आगे बढ़ता रहता है। शिक्षक की शिक्षा हमारे जीवन में प्रत्येक रंग से चित्रित होती है जो संघर्ष क्षणों में प्रेरणादायी व अनुशासन के तौर-तरीक़ों द्वारा हमें आदर्शवादी होने का परिचय भी कराती है। आत्म निरीक्षण के पाठ को पढ़ाने व समझने की शक्ति का संचार करने की दृष्टि श्रेष्ठ शिक्षक की देन है।

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