दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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मेघ, सावन और ईश्वर…
शिव शंकर का रूप निराला,
मेरा शंकर बड़ा भोला-भाला।
आशुतोष शिव हैं ये कहलाते,
जो थोड़े में ही खुश हो जाते।
सावन में विशेष रूप में आते,
भक्तों की मनोकामना पुराते।
दुनिया हेतु ही पीते हैं ये हाला,
शिव शंकर का रूप निराला…॥
सावन में हर जगह धूम है होती,
मंदिर में अखंड ज्योति जलती।
पूजा वंदना और आरती है होती,
भक्तों पर तब खुशियाँ बरसती।
पुष्प, चंदन, अक्षत और हो माला,
अड़भंगी का होता रूप निराला…॥
सर पे जटा में रहती है मॉं गंगा,
रूप देख मन हो जाता है चंगा।
गले में सर्प, नंदी भी रहता संगा,
कृपा हो इनकी रहे ना कोई तंगा।
भांग धतुर से हैं खुश होने वाला,
मेरे भोले का रूप रहता निराला…॥
हमारे भोले हैं बाबा औघड़ दानी,
जिनके आशीष से बने दाना-पानी।
इनके रूप पर रीझीं माता भवानी,
बन गई हिमालय पे कैलाश रानी।
दुनिया में हैं तो ये सबसे ही आला,
बम भोले का रूप है सदा निराला…॥
परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।