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शिव-शंभू अंतर जिसने…

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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शिव, महादेव, शंकर, शंभू में अंतर जिसने माना है,
भक्त नहीं, मूरख वो ना शिव-तत्व जानने वाला है।
शिव, महादेव, शंकर, शंभू में अंतर जिसने माना है,
भक्त नहीं अज्ञानी, ना शिव-तत्व जानने वाला है।

कोई कहता शिव प्रभु जी बिन पार्वती के शव हैं जी,
कोई कहता महादेव तो सब देवों से विलग हैं जी।
कोई कहता शंकर वो जो हैं सबका संहार करें,
कोई कहता शिवजी वो हैं जो कि सबसे प्यार करें।
लोगों की इस अलग बुद्धि ने अलग सभी कर डाला है,
लोगों की इस भिन्न बुद्धि ने छिन्न-भिन्न कर डाला है।
भक्त नहीं अज्ञानी, ना शिव-तत्व जानने वाला है…॥

उच्च-चेतना शिव का अर्थ कल्याण सभी का करती है,
महादेव की ऐसी कृपा सब पर सम दृष्टि रखती है।
शंकर जी कर्मों का लेखा-जोखा कर संहार करें,
शंभू अर्थ है सह अंबा संग नित्य नवीन विहार करें।
रूप अनेक हैं आदि देव जिससे पड़ जाए पाला है।
भक्त नहीं अज्ञानी, ना शिव-तत्व जानने वाला है…॥

सर्वप्रथम तो शिव बनके इस सृष्टि का आधार हैं वे,
शंभू बनके सृष्टि में हर युगल नित्य साकार हैं वे।
महादेव बनके जग में हर समता का व्यवहार हैं वे,
शंकर बनके काल रूप धर दुष्टों का संहार हैं वे।
अपने हर स्वरूप में शिव ने जग को नित्य संभाला है।
भक्त नहीं अज्ञानी, ना शिव-तत्व जानने वाला है…॥

मानव बन के सभी रूप में क्या तुम सम रह पाते हो,
जब जैसा व्यवहार चाहिए, वैसा
करके दिखाते हो।
दुष्टों से नित दूर रहो, प्रेमी संग प्रेम निभाते हो,
दुष्टों से व्यवहार उचित प्रेमी संग प्रेम निभाते हो।
प्रभु के रूप अनेक स्वरूप एक क्यों फर्क बताते हो,
जिसने सोच कर्म कर मुख में रक्खा एक निवाला है।
वो ही भक्त मेरे शिव का शिव-तत्व जानने वाला है।
वो ही भक्त मेरे शिव का शिव-तत्व जानने वाला है…॥

शिव, महादेव, शंकर, शंभू में अंतर जिसने माना है,
भक्त नहीं अज्ञानी, ना शिव-तत्व जानने वाला है…॥