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श्रमिक की व्यथा

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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जीवन संघर्ष (मजदूर दिवस विशेष)…

श्रमिक दिवस है आज,
आप मुझ पर कविता लिखिए
कहानी लिखिए, श्रम-दिवस मनाइए, भाषण सुनाइए।

मैं कल जहाँ था, आज भी वहाँ हूँ,
मेरी जिन्दगी में कोई परिवर्तन नहीं
कल जो सपने देखता था,
वही आज भी देखता हूँ।

सपनों से कभी थक नहीं पाया,
हालात से कभी उबर नहीं पाया
मेहनत से बनाते कोठियाँ, आलीशान घर,
अपने लिए अच्छी झोपड़ी ना बना पाया।

ताजमहल भी तो हमने बनाया
मगर पुरस्कार के बदले,
अपने हाथ ही गंवा आया।

हम मेहनतकश हैं,
हाड़-तोड़ मेहनत करते हैं।
पहाड़ तोड़ते हैं, नदी के धारे मोड़ते हैं,
खून-पसीना एक करते हैं।

फुटपाथों पर गुजर-बसर करते हैं,
पसीने से भीगता तन-बदन हालातों से नहीं डरते,
डट कर सामना करते हैं।

मैं चाहता हूँ, हमारा सम्मान हो,
हम भी इंसान हैं, हमारे श्रम का पूरा मान हो
बीमा, पेंशन और भविष्य की सफल योजना हो,
झूठे आश्वासन नहीं, स्वार्थ रहित अपनापन हो।

ठेकेदारों का दुर्व्यवहार,
‘मनरेगा’ के बिचौलियों की फटकार…
क्यों हैं आप हमारे जीवन से लापरवाह ?,
हमें अपनापन चाहिए।

आप हमें अपना बनाइए,
हम मजदूर हैं।
हमें इंसान समझिए,
इंसान खुद को बनाइए॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।