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भारत की विदेश नीति का डंका

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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दुबई में अनेक भारतीयों, अफगानों, पाकिस्तानियों, ईरानियों, नेपालियों, रूसियों और कई अरब शेखों से खुलकर संवाद से पहली बात तो यह पता चली कि दुबई के हमारे प्रवासी भारतीयों में भारत की विदेश नीति का बहुत सम्मान है। हम लोग नरेंद्र मोदी और विदेश नीति की कई बार दिल्ली में कटु आलोचनाएं भी सुनते हैं, लेकिन यहां तो उसका असीम सम्मान है। संयुक्त अरब अमारात के टी.वी. चैनलों और अखबारों का स्वर भी इस राय से काफी मिलता-जुलता है। यह जानकर और भी अच्छा लगा कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ प्रमुख लोगों ने भारत द्वारा काबुल को प्रेषित अनाज और दवाईयों की पहल की बहुत तारीफ की। उनका सुझाव यह भी था कि इस संकट के वक्त यदि भारत पाकिस्तान की मदद के लिए हाथ बढ़ा दे तो पाकिस्तान की जनता नरेन्द्र मोदी की मुरीद हो जाएगी। यदि शाहबाज़ शरीफ और फौज मोदी की दरियादिली को नकार दें तो उनकी काफी किरकिरी हो सकती है। कई प्रमुख अफगान नेताओं ने वार्ताओं में कहा कि वे भारत सरकार द्वारा दी गई मदद से तो अभिभूत हैं ही, लेकिन वे मानते हैं कि अफगानिस्तान की अस्थिरता को यदि कोई मुल्क खत्म कर सकता है तो सिर्फ भारत ही कर सकता है। अमेरिका और रूस ने अफगानिस्तान में फौजें भेजकर देख लिया, करोड़ों रूबल और डाॅलर उन्होंने वहां बहा दिए और बड़े बे-आबरू होकर वे वहां से निकले। उनका मानना है कि अकेला भारत अगर पहल करे और अमेरिका के जो बाइडन, कमला हैरिस और ब्रिटेन के ऋषि सुनाक को अपने साथ जोड़ ले तो अफगानिस्तान में शांति और व्यवस्था कायम हो सकती है। इन तीनों राष्ट्रों की संयुक्त पहल को मानने से न तो तालिबान इन्कार कर सकता है, न ही पूर्व अफगान राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री व न ही पाकिस्तान! यूक्रेन के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री डाॅ. जयशंकर ने जैसा संतुलित रवैया अपनाया है, उसने विश्व राजनीति में भारत की छवि को चमका दिया है।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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