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‘श्रम’ धर्म है, और जीवन लंबी मज़दूरी

नीता श्रीवास्तव ‘श्रद्धा’
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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श्रम आराधना विशेष….

कड़कती धूप में झुलसता है शरीर,
धूल और पसीना जैसे उसकी पहचान
हाथों में छाले हैं, पैरों में, बिवाई की दरारें,
होंठ उतना ही मुस्कुराते हैं, जितनी दिहाड़ी!

दिनभर के श्रम के बाद,
शाम उसके पास नहीं ठहरती
नींद भी उतनी ही आती है,
जितना थका शरीर और रोटी के सपने में उलझा मन!

उसका श्रम,
हर उस जगह दिखता है जो उसका नहीं
उसके हिस्से है,
सिर्फ़ खुला आकाश, सीमित साँस और सीमित आस।

फिर भी हर सुबह,
वह उठता है एक नयी आशा के साथ
अपने तन और मन के घावों को सहलाकार, बाँधकर,
नए दिन को थामने चल पड़ता है।

श्रम उसका धर्म है,
और जीवन-एक लंबी मज़दूरी॥