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संघर्ष को आमंत्रित करे युवा पीढ़ी

ललित गर्ग

दिल्ली
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अन्तर्राष्ट्रीय युवा दिवस (१२ अगस्त) विशेष…

युवा क्रांति का प्रतीक है, ऊर्जा का स्रोत है। इस क्रांति एवं ऊर्जा का उपयोग रचनात्मक एवं सृजनात्मक हो, इसी ध्येय से सारी दुनिया प्रतिवर्ष १२ अगस्त को ‘अन्तर्राष्ट्रीय युवा दिवस’ मनाती है। सन् २००० में इस दिवस का आयोजन आरम्भ किया गया था। यह दिवस मनाने का मतलब है कि, युवाशक्ति का उपयोग विध्वंस में न होकर निर्माण में हो। शांति को बढ़ावा देने, उग्रवाद का मुकाबला करने में युवा शांति निर्माताओं को शामिल करने की अभूतपूर्व स्वीकृति और पूरी दुनिया की सरकारें युवा के मुद्दों और उनकी बातों पर ध्यान आकर्षित करे, न केवल सरकारें बल्कि आम-जनजीवन में भी युवकोें की स्थिति, उनके सपने, उनका जीवन लक्ष्य आदि पर चर्चाएं हों, युवाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्तर पर भागीदारी सुनिश्चित की जाए। इन्हीं मूलभूत बातों को लेकर यह मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानन्द ने भारत के नवनिर्माण के लिए मात्र १०० युवकों की अपेक्षा की थी, क्योंकि वे जानते थे कि युवा ‘दूरदर्शी’ होते हैं और उनमें नव निर्माण करने की क्षमता होती है। नया भारत निर्मित करते हुए नरेन्द्र मोदी को भी युवाशक्ति को आगे लाना होगा। युवा किसी भी देश का वर्तमान और भविष्य हैं। वो देश की नींव हैं, जिस पर देश की प्रगति और विकास निर्भर करता है, लेकिन आज भी बहुत से ऐसे विकसित और विकासशील राष्ट्र हैं, जहाँ नौजवान ऊर्जा व्यर्थ हो रही है। कई देशों में शिक्षा के लिए जरूरी आधारभूत संरचना की कमी है तो कहीं प्रछन्न बेरोजगारी और अनेक विसंगतियों व बुराइयों से यह घिरे हैं। विशेषतः युवा अपनी वृद्ध पीढ़ी की उपेक्षा के कारण भी निशाने पर है। विश्व की गम्भीर समस्याओं में प्रमुख है नशीले पदार्थों का उत्पादन, तस्करी और सेवन की निरंतर वृद्धि। युवा पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह कैद हो चुकी है। आज हर तीसरा युवक किसी न किसी नशे का आदी है। अगर यही प्रवृत्ति रही तो सरकार, सेना और समाज के ऊँचे पदों के लिए शरीर और दिमाग से स्वस्थ युवा नहीं मिलेंगे। एक नशेड़ी पीढ़ी का देश कैसे अपना पूर्व गौरव प्राप्त कर सकेगा ? इन स्थितियों के बावजूद युवाओें को एक उन्नत एवं आदर्श जीवन की ओर अग्रसर करना वर्तमान की सबसे बड़ी जरूरत है। युवा सपनों को आकार देने का अर्थ है सम्पूर्ण मानव जाति के उन्नत भविष्य का निर्माण। यह सच है कि, हर दिन के साथ जीवन का एक नया लिफाफा खुलता है, नए अस्तित्व के साथ, नए अर्थ की शुरूआत के साथ, नयी जीवन दिशाओं के साथ। हर नई आंख देखती है इस संसार को अपनी ताजगी भरी नजरों से। इनमें जो सपने उगते हैं इन्हीं में नए समाज की, नए आदमी की नींव रखी जाती है।
सभी युवावस्था के दौर से गुजरते हैं, लेकिन जिनमें युवकत्व नहीं होता, उनका यौवन व्यर्थ है। उनके निस्तेज चेहरे, चेतना-शून्य उच्छ्वास एवं निराश सोच के कारण न तो वे अपने लिए कुछ कर पाते हैं, न समाज एवं राष्ट्र को कुछ दे पाते हैं। वे इतना सतही जीवन जीते हैं कि, उनका यौवन कार्यकारी तो होता ही नहीं, खतरनाक प्रमाणित हो जाता है। युवाशक्ति जितनी विराट और उपयोगी है, उतनी ही खतरनाक भी है। इस परिप्रेक्ष्य में युवाशक्ति का रचनात्मक एवं सृजनात्मक उपयोग करने की जरूरत है।
गांधी जी से एक बार पूछा गया कि “उनके मन की आश्वस्ति और निराशा का आधार क्या है ?” गांधी जी बोले-“इस देश की मिट्टी में अध्यात्म के कण हैं, यह मेरे लिए सबसे बड़ा आश्वासन है, पर इस देश की युवा पीढ़ी के मन में करुणा का स्रोत सूख रहा है, यह सबसे बड़ी चिन्ता का विषय है।”
मूल प्रश्न है कि, क्या हमारे आज के नौजवान भारत को सक्षम देश बनाने का स्वप्न देखते हैं ? या वर्तमान युवा केवल उपभोक्तावादी संस्कृति से जन्मी आत्मकेन्द्रित पीढ़ी है ? दोनों में से सच क्या है ? दरअसल, हमारी युवा पीढ़ी महज स्वप्नजीवी पीढ़ी नहीं है, वह रोज यथार्थ से जूझती है, उसके सामने भ्रष्टाचार, आरक्षण का बिगड़ता स्वरूप, महंगी होती शिक्षा, भविष्य की चुनौती और उनकी नैसर्गिक प्रतिभा को कुचलने की राजनीतिक विसंगतियाँ जैसी तमाम विषमताओं और अवरोधों की ढेरों समस्याएं भी हैं। उनके पास कोरे स्वप्न ही नहीं, बल्कि आँखों में किरकिराता सच भी है। इन जटिल स्थितियों से लोहा लेने की ताकत युवा में ही है, क्योंकि युवक शब्द क्रांति का प्रतीक है।
युवा पीढ़ी पर यह दायित्व है कि, संघर्ष को आमंत्रित करे, मूल्यांकन का पैमाना बदले, अहं को तोड़े, जोखिम का स्वागत करे व स्वार्थ से ऊपर उठे। युवा दिवस मनाने का मतलब है-एक दिन युवकों के नाम। इस दिन पूरे विश्व में उसके हृास और विकास पर चिंतन होगा, समस्याओं पर विचार होगा और ऐसे रास्ते खोजे जाएंगे, जो इस पीढ़ी को एक सुंदर भविष्य दे सकें। इसका सबसे पहला लाभ तो यही है कि, संसारभर में एक वातावरण बन रहा है युवा पीढ़ी को अधिक सक्षम और तेजस्वी बनाने के लिए।
युवकों से संबंधित संस्थाओं को सचेत और सावधान करना होगा और कोई ऐसा सकारात्मक कार्यक्रम हाथ में लेना होगा, जिसमें निर्माण की प्रक्रिया अपनी गति से चलती रहे। विशेषतः राजनीति में युवकों की सकारात्मक एवं सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करना होगा। अर्नाल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक ‘सरवाइविंग द फ्यूचर’ में नवजवानों को सलाह देते हुए लिखा है ‘मरते दम तक जवानी के जोश को कायम रखना।’ यह इसलिए कहना पड़ा, क्योंकि जो जोश भरा जाता है, यौवन के परिपक्व होते ही उन चीजों को भावुकता या जवानी का जोश कहकर भूलने लगते हैं। वे नीति विरोधी काम करने लगते है, गलत और विध्वंसकारी दिशाओं की ओर अग्रसर हो जाते हैं। युवकों के लिए जरूरी है कि, वे जोश के साथ होश कायम रखें।
आज की युवा पीढ़ी में उर्वर दिमागों की कमी नहीं है, मगर उनके दिलो-दिमाग में विचारों के बीज पल्लवित कराने वालेे स्वामी विवेकानन्द और सुकरात जैसे लोग दिनों-दिन घटते जा रहे हैं।
कला, संगीत और साहित्य के क्षेत्र में भी ऐसे कितने लोग हैं, जो नई प्रतिभाओं को उभारने के लिए ईमानदारी से प्रयास करते हैं ?
महादेवी वर्मा ने भी कहा है- ‘‘बलवान राष्ट्र वही होता है, जिसकी तरुणाई सबल होती है।’’ इसी लिए युवा पर यह दायित्व है कि, वह कोई ऐसी क्रांति घटित करे, जिससे युवकों की जीवन-शैली में रचनात्मक परिवर्तन आ सके, हिंसा-आतंक-विध्वंस की राह को छोड़कर वे निर्माण की नयी पगडंडियों पर अग्रसर हो सकें।