कुल पृष्ठ दर्शन : 13

You are currently viewing संविधान:कांग्रेस का दोहरा रवैया दुर्भाग्यपूर्ण

संविधान:कांग्रेस का दोहरा रवैया दुर्भाग्यपूर्ण

ललित गर्ग

दिल्ली
***********************************

कांग्रेस एक बार फिर संविधान को लेकर विवादों से घिर गई है। संविधान के संबंध में कांग्रेस का दोहरा रवैया एवं चरित्र फिर देश के सामने आया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अक्सर हाथ में संविधान की प्रति लेकर भाजपा पर इसे बदलने का आरोप लगाते रहे हैं। लोकसभा चुनाव के समय अपनी हर सभा में इस आरोप को दोहराते रहे कि अगर भाजपा फिर से सत्ता में आई तो संविधान बदल कर आरक्षण खत्म कर देगी, इसका भाजपा को नुकसान भी उठाना पड़ा है, लेकिन जानकर हैरानी होगी कि भाजपा पर संविधान बदलने का आरोप लगाने वाली कांग्रेस आज खुद संविधान बदलने की बात कर रही है। दरअसल, कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ओबीसी श्रेणी के तहत पिछड़े मुस्लिमों को आरक्षण देने जा रही है। सार्वजनिक निर्माण अनुबंधों में मुसलमानों को ४ प्रतिशत आरक्षण के संदर्भ में जब उप-मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार को यह याद दिलाया कि संविधान के तहत मजहब के आधार पर आरक्षण देना मुमकिन नहीं है, तब उन्होंने इशारा किया कि आरक्षण देने के लिए जरूरी बदलाव किए जाएंगे। इस बयान के बाद कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक फिर संविधान बचाने का सियासी अभियान हावी हो गया है। इस बार भाजपा आक्रामक है और उसने इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। इस वर्ष बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव का यह अहम मुद्दा बन जाए तो कोई आश्चर्य नहीं है।
मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए कांग्रेस सरकारें अपने-अपने राज्यों में अतिश्योक्तिपूर्ण घोषणाएं एवं योजनाएं लागू करती रही हैं, कर्नाटक में भी वहां के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने सरकार का बजट पेश करते हुए मुस्लिमों के लिए कई घोषणाएं की। सरकार ने कहा कि मुस्लिम लड़कियों के लिए १५ महिला कॉलेज खोले जाएंगे और निर्माण वक्फ बोर्ड की ही जमीन पर किया जाएगा, लेकिन सरकार इस पर पैसा खर्च करेगी। सरकार के बजट में दलितों और पिछड़ों के कल्याण के लिए समुचित बजट आवंटित नहीं हुआ, लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते मुस्लिमों के लिए लुभावना बजट आवंटित किया गया है, जबकि सरकारों का काम किसी धर्म एवं समुदाय विशेष का तुष्टिकरण न होकर सभी समुदायों का पुष्टिकरण होना चाहिए। जब संविधान में धर्म आधारित आरक्षण का निषेध किया गया है, तो जान-बूझकर कर्नाटक में इसे सूचीबद्ध करके विधि सम्मत क्यों बनाया जा रहा है ?
दरअसल, भाजपा और कांग्रेस, दोनों देश की प्रमुख पार्टियों को यह एहसास हो चला है कि संविधान इस देश में बहुत संवेदनशील विषय है और इस पर लोग कतई समझौता नहीं करेंगे। इस अर्थ में यह देश के जन-जन के मन का दस्तावेज है। संविधान भारत में सभी नागरिकों के लिए दिग्दर्शक तत्व है। इसलिए, प्रश्न यह उठता है कि जब संविधान इतना स्पष्ट है तो क्या संविधान की मूल भावना पर केवल राजनीतिक स्वार्थ के लिए आघात करना स्वस्थ लोकतंत्र का लक्षण है ? दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस पवित्र ग्रंथ पर भी विपक्षी दल एवं कांग्रेस अत्यंत निकृष्ट राजनीति करती जा रही है। जो कांग्रेस शासन में रहते हुए कभी संविधान का सम्मान नहीं कर सकी, वह आज विपक्ष में बैठकर यह भ्रम फैलाने में लगी है कि मोदी सरकार संविधान को खत्म कर देगी। सच तो यह है कि कांग्रेस जैसे दल अपने गांधीवादी विचार एवं समाजवादी पार्टी जैसे दल समाजवाद और राम मनोहर लोहिया के मूलभूत विचारों को भूल चुके हैं। संविधान को आधार बनाकर विपक्षी दल जनता को विभाजित करने, मुस्लिम तुष्टिकरण एवं राजनीतिक स्वार्थ की रोटियाँ सेंकने से बाज नहीं आ रहे हैं। आश्चर्य नहीं, कांग्रेस ने संविधान को लेकर जो हथियार चलाया था, वही हथियार कर्नाटक में स्वयं कांग्रेस के विरुद्ध चला गया है। अब इससे होने वाले नुकसान का भान होते ही कांग्रेस तत्काल बचाव में लग गई है। इस बार कांग्रेस निशाने पर आ गई है। अब तो तीर कमान से निकल चुका है। स्पष्ट है कि हमारा संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण का पक्षधर नहीं है। डॉ. भीमराव आंबेडकर भी ऐसे आरक्षण के हिमायती नहीं थे। संविधान सभा में एकमत के साथ यह तय हुआ था कि धर्म के आधार पर कोई आरक्षण नहीं दिया जाएगा। अब अगर ऐसे आरक्षण की जरूरत पड़ने लगी है, या कांग्रेस मुसलमानों के वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए आरक्षण का हथियार चलाती है तो संविधान में संशोधन तो करना ही होगा।
अपने आजाद देश में जरूरतमंदों को आरक्षण देने के लिए करीब १२ बार संविधान में संशोधन किए गए है और मुस्लिमों को महज मजहबी बुनियाद पर आरक्षण देने के लिए भी ऐसी जरूरत पड़ेगी।
लोग संविधान के खिलाफ धर्म के आधार पर आरक्षण देने की कांग्रेस की कोशिश का विरोध कर रहे हैं।
धर्म के आधार पर आरक्षण की इस कोशिश से उसका असली चेहरा देश के सामने आया है। कांग्रेस भारत के संविधान के साथ खिलवाड़ कर रही हैं, मुस्लिम आरक्षण को संविधान में जगह देकर संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर के खिलाफत की जा रही है।

राहुल गांधी एवं कांग्रेस पार्टी का रवैया आरक्षण को लेकर समय-समय पर बदलता रहा है। कभी उसने संविधान संशोधन की बात की, तो कभी आरक्षण का विरोध किया, तो कभी धर्म के आधार पर आरक्षण देने के प्रयास भी किए गए। कांग्रेस नेता संविधान की किताब जेब में रखते हैं, लेकिन इसे कमजोर करने के लिए हरसंभव कोशिश भी करते हैं। अब कांग्रेस अध्यक्ष को पार्टी की स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए और देश को बताना चाहिए कि कांग्रेस मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए संविधान में बदलाव क्यों करना चाहती है ? स्पष्ट है कि कांग्रेस के लिए हमारा संविधान केवल सत्ता को साधने का एक उपकरण मात्र रहा है, संविधान के प्रति सम्मान की भावना कांग्रेस के चरित्र में नहीं है।