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सच्चे हिंदुस्तानी बन जाओ

ज्ञानवती सक्सैना ‘ज्ञान’
जयपुर (राजस्थान)

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‘मैं और मेरा देश’ स्पर्धा विशेष……..

इस माटी से उपजे हो तो,
सच्चे हिंदुस्तानी बन जाओ
भारत माता बनी यशोदा,
तुम कान्हा बनकर दिखलाओ।

इस माटी का नीर है अमृत,
पी-पी कर हम बड़े हुए
इस माटी का कण-कण चंदन,
खेल-कूद हम बड़े हुए।
इस माटी के अन्न और जल से,
सामर्थ्यवान और पुष्ट हुए
इस माटी की सौंधी खुशबू,
आज रगों में दौड़ रही
इस माटी की गौरव गाथा,
पवन जहन में घोल रही।
इस माटी के जाये हम सब,
एक नाव के नाविक हैं
क्या रक्खा है नादानी में,
समय रहते समझ जाओ।
इस माटी से उपजे हो तो,
सच्चे हिंदुस्तानी बन जाओ…॥

इस माटी के जयचंदों का,
कल उपहास सारा जहाँ करेगा
इस माटी से की ना इंसाफी तो,
कैसे ईश्वर माफ़ करेगा।
इस थाली में खाया नित उठ,
उसमें छेद हजार किए
कैसे ईश्वर माफ़ करेगा,
छेद जो बारम्बार किए।
इस माटी को ठोकर देकर,
दुनिया की ठोकर खाएँगे
इस माटी ने श्राप दिया तो,
माटी में मिल जाँएगे।
इस माटी के सगे नहीं हम,
फिर सगे किसी के क्या हो पाएँगे ?
इस माटी की कल की पीढ़ी,
जमकर हम पर थूकेगी
द़गा ना देना अपनों को तुम,
अपनों को दिल से अपनाओ।
इस माटी से उपजे हो तो,
सच्चे हिंदुस्तानी बन जाओ…॥

इस माटी की आन-बान रख,
हिलमिल नव उत्थान करें
इस माटी का कर्ज है हम पर,
इस माटी का मान करें।
इस माटी के सजदे में हम,
नित उठ इसे प्रणाम करें
इस माटी की गंगा जमुना,
नव संस्कृति का संचार करें।
सारागढ़ी से जांबाज बनकर,
मुल्क पे जाँ निसार करें
यदि मामा अपना बना कंस हो,
उसके संहारक बन जाएँ।
जाति धर्म से बड़ा वतन हो,
ऐसे निर्णायक बन जाएँ।
इस माटी से जन्मे हैं,
और इस माटी में मिलना है
नई पीढ़ी के आगे हमको,
सोच नई अब रखना है।
इंसानियत की कद्र करो,
देर ना करो संभल जाओ।
इस माटी से उपजे हो तो,
सच्चे हिंदुस्तानी बन जाओ…॥

काश मैं और मेरा देश,
पुनर्प्रतिष्ठा पा जाए।
पुन:विश्वगुरु बन,
सकल विश्व पर छा जाए॥

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