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देशप्रेम हो चित्त

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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‘मैं और मेरा देश’ स्पर्धा विशेष……..

समरसता के रंग सना जो,
सराबोर परिवेश वतन है।
प्राणों से प्यारा भारत मन,
अनेकता में एक रतन है।

जाति-धर्म आधार हीन हो,
हर चुनाव आचार नियम है।
ऊँचे से नीचे जनता सब,
लोकतंत्र आधार सुगम है।

कवि ‘निकुंज’ जीवन जन्म सफल,
प्रेम भक्ति रग भारत मय है।
सहयोगी मानस सुख-दु:ख बन,
देशभक्ति परिवेश सदय है।

भाईचारा अपनापन हो,
प्रगति प्रीति सम्मान हृदय है।
अपनापन परहित शान्ति सुखद,
समरस हिय अरमान उदय है।

तज आलस संकल्प लिया मन,
नित मेहनत से प्यार वतन है।
मिटे निराशा जन मन जीवन,
नव आशा संचार यतन है।

त्याग शील परहित मन सेवन,
देशप्रेम ही प्रजा चित्त है।
खुले द्वार साफल्य अरुण बन,
पौरुष संबल शौर्य वृत्त है।

चाह वतन उत्थान सदा हो,
राष्ट्र धर्म सम्मान मुदित है।
रोजगार युवाजन सुलभ सहज,
नव जीवन अवदान सृजित है।

भिन्न-भिन्न मति चिन्तन दर्शन,
जाति धर्म आलाप बहुल है।
फिर भी भारत एक देश बन,
विपदाओं में साथ सबल है।

शील त्याग गुण कर्म पथिक यह,
पौरुष बल सत्काम सुयश है।
जीवनदर्शन प्रीत नीति नित,
भारत नित अभिराम नियत है।

हरित भरित साहित्य कला रस,
काव्यशास्त्र उद्रेक गीत है।
नीति प्रीति संगीत मुदित मन,
भाषा मृदुता लोकगीत है।

विविध प्रथा न्यायिक हिय चिन्तन,
फिर भी भारत एक जगत है।
नारी का है सम्मान वतन,
साहस संयम मति विवेक है।

शस्यश्यामला भू हरित-हरित,
भारत माँ का प्रमुदित किसान है।
नाथुल तमंग लद्दाख लेह,
हाथ तिरंगा हर जवान है।

गिरि वन पादप सरिता भारत,
हरित हरित सुष्मिता सुरभित है।
मुकुट हिमालय भाल सुशोभित,
सप्तनदी जल पुण्य ललित है।

प्राणों से प्यारा जन-गण भारत,
संविधान बस मूल ग्रन्थ है।
शोध प्रगति नव शिक्षित युवजन,
विज्ञान राह धर्म पंथ है।

मानवता सद्भावन मूल्यक,
मर्यादित संस्कार विनत है।
सत्य अहिंसा सदाचार पथ,
जन गण मन मंगल नैतिक है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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