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सतगुरु गुण मुख कह्यो न जाए

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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सतगुरु गुण मुख कह्यो‌ न जाए।
गुरु निष्ठा जिसने मन धारी,
वो‌ ही परमेश्वर को पाए॥

गुरु ने जो प्रभु नाम दिया है,
भव-तारण आधार दिया है।
नेत्र चढ़ा धन-वैभव चश्मा,
ना कोई गुरु के दोष लखाए।
सतगुरु गुण मुख…॥

प्रभु स्वयं सतगुरु बन आए,
नाम का कोर तुझे पकड़ाए।
प्रभु सुमिरन के लाख बहाने,
गुरु की वाणी ये समझाए।
सतगुरु गुण मुख…॥

सतगुरु महिमा जग में भारी,
डोर बंधाई प्रभु से प्यारी।
मैं प्रसन्न क्या देकर होऊं,
मन मेरा ये समझ ना पाए।
सतगुरु गुण मुख…॥

चरण पड़े सतगुरु के जहां पे
तीरथ सुख मिल जाए वहाँ पे।
अहम्, स्वयं की भेट चढ़ा दो,
सतगुरु जब जीवन में आए।
सतगुरु गुण मुख…॥

सतगुरु गुण मुख कह्यो न जाए।
गुरु निष्ठा जिसने मन धारी,
वो ही परमेश्वर को पाए॥