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सपनों की चाह

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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कितने रंग हैं ज़िन्दगी के,
बहुत कुछ मांगते हैं हम
पर वह हक़ीक़त में पूरे नहीं होते,
क्योंकि वह सपनों की चाह होती है।

नीचे धरती पर बैठ,
ऊपर दूर गगन को देखते हुए हम
बहुत उम्मीदें लगा लेते हैं,
पर वह सपनों की चाह होती है।

हम बहुत-सी उम्मीदें रखते हैं,
पर वह पूरी होती नहीं
क्योंकि ज़िन्दगी संघर्ष-दृश्य है,
और उसी में हमारे सपनों की चाह होती है।

जीत-हार और खुशियों-ग़म,
के बीच में जीवन चलता है
और हम सोचते तो हैं वर्षों की,
पर पल का भरोसा नहीं।
ये सपने हैं हमारे,
और इसी की चाह होती है…॥