हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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एक संस्था के आफिस में मैनेजर फोन पर बोल रहा था-“आजकल तो हर चीज किराए पर मिल जाती है। चकाचौंध भरी दुनिया में आधुनिकता का तड़का लगा हुआ है। इसके चलते जीवन-मरण, सुख-दु:ख व हर एक के लिए यहाँ सब-कुछ तैयार मिलता है। शादी- सगाई के लिए टेलेंटेड बन्दे मिल जाते हैं हर उम्र के, आप तैयार हो ना…! सभी के अलग-अलग भाव के अनुसार उनकी प्रतिभा के हिसाब से आप उनकी सहभागिता सुनिश्चित कर सकते हैं। अब आप इसे नाटक समझें, या फिर आपकी समस्या का समाधान, यह आप का विवेकाधिकार है, पर मूल्य तो चुकाना ही होगा, तभी आपका काम पूरा होगा। जनाब चाहें आप कंधा लगवा लीजिए या दूल्हे राजा के रिश्तेदार बनवा लीजिए। सब काम में तैयार है हमारी इस संस्था में आदमी, आप तैयार हो ना…!”
इसी बीच एक ग्राहक आता है आफिस में,-“अरे आइए, आइए बैठिए सेठ जी।”
मैनेजर बोला-“आप के दु:ख-सुख में हमेशा तैयार है हमारी संस्था। आपके अनुदान के हिसाब से किस काम के लिए, किसे ले जाना चाहते हो ? कितने आदमी, १ दर्जन, २ दर्जन… सभी के रेट में थोड़ा-बहुत फर्क है सेठ जी। यह कोई लूट का काम नहीं है। आप बताएं किस काम के लिए आए हैं ?”
“अरे भाई क्या बताऊं! आज सुबह ही मेरे पूज्य पिता जी का स्वर्गवास हो गया। ११ बजे शवयात्रा निकलेगी। अब इस शहर में लाईफ-स्टाइल कितनी तेजी से बढ़ रही है। फिर किसी के पास टाइम नहीं है। रिश्तेदार दूर से आते-आते शाम हो जाएगी, इसी लिए आपके आफिस आया हूँ। जल्दी से १५ लोग तो चहिए, ५-६ महिलाएं भी हों। आदमी होशियार चहिए, जो शवयात्रा के दौरान कंधा लगा लें। सब-काम अच्छे से हो जाएगा।”
“ठीक है सेठ जी, मैं २० लोगों को भेज देता हूँ। “
“हाँ, हाँ सही है मैनेजर साहब, पर पैसे कितने लगेंगे ?
“सेठ जी, १ आदमी के ४०० ₹। एडवांस २००० ₹ जमा करा दीजिए, बाकी बाद में जब सब कार्य निपट जाए, तब दे सकते हो।”
एडवांस जमा कराकर वह चले जाते हैं, उसी बीच फिर दूसरा ग्राहक आता है,- “सगाई के लिए १० आदमी चहिए, जो रिश्तेदार बन कर चल सकें। मात्र २ घंटे का काम है। बताईए तैयार हैं आदमी! अर्जेन्ट में अभी चलना है, क्योंकि २ बजे हम दोनों को ऑफिस जाना है।”
मैनेजर-“हाँ, हाँ हमारे यहाँ २४ घंटे सुविधा उपलब्ध है। पुरुष, महिला, लड़की, बच्चे सब मिल जाएंगे, पर श्रीमान जी अर्जेन्ट यानी त्वरित सेवा के ₹ ज्यादा लगेंगे। “
“हाँ, हाँ ठीक है चलेगा। बताईए कितने देना है ?”
“सर ५०००₹ अभी जमा करा दीजिए। बाकी सगाई के बाद टोटल १५ हजार ₹ लगेंगे।”
“ठीक है, भेजिए।”
उसी बीच मैनेजर आदमियों को बोलता है, अरे वह सभागार में ४० आदमी गए कि नहीं! बारात लगना है ४ बजे। १० बुजुर्ग भी चाहिए, चाचा, मामा व काका बनाएंगे।”
यह देखिए महानगरों व आधुनिक शहरों का हाल। इस आपा-धापी में पैसे की तरफ भागता मनुष्य इतना पत्थर दिल हो चुका है कि इंसान से इंसानियत के रिश्ते दिखावटी हो चुके हैं। समय का अभाव कहें या लालच का पिटारा कि अब रिश्ते खोखले साबित हो चुके हैं। हाँ समय मूल्यवान जरुर है, पर अपने लिए। परिवार के लिए रिश्ते, परम्परा, भाईचारा, समन्वय, धर्म, संस्कार और हमारी भारतीय संस्कृति यह विदेशी आक्रमणकारी की नकारात्मक सोच से दूषित हो चुके हैं। सब-कुछ बेकार हो गया है। मनुष्य की नैतिकता में खोट आ गई है। पैसे, माया, लोभ, चोरी और झूठ के प्रलोभन में वर्तमान समय में मनुष्य भटक गया है। इसी लिए, इस भौतिकता के दौर में सब-कुछ बिकता है, ख़रीदोगे क्या ? एक मशहूर कलमकार ने कहीं लिखा था कि एक समय वह था, जब लोगों के घर छोटे थे, पर दिल बड़े होते थे। आज दिल छोटे और घर बड़े हो गए हैं। तभी तो यहाँ सब-कुछ मिलता है, तो आप तैयार हो ना…!