डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
*************************************************
होली सतरंगी खुशियों, मुस्कान, अपनापन, मधुरिम रिश्तों, माधुर्य, सद्भावना, भक्ति, समरसता, सहजता, औदार्य, उदात्त, परस्पर व्यवहार, वास्तविक फागुनी प्राकृतिक सौन्दर्यीकरण एवं सुस्वादु पकवानों का सत्यजय आनंदमय पर्व है। प्रेम और सत्य के इन्द्रधनुषी रंगों की विविधताओं से सम्पन्न रंगोत्सव मानवीय आनन्दप्रद सौहार्द्र पूर्णाचरण का मानसरोवर है, जिसमें हंस हो या बक, सब मनभावन अवगाहन करते हैं और रंगों एवं गुलालों के फागुनी सौन्दर्य से भीगे पड़े हैं। मानवतावादी दरियादिली का मानक होलिकोत्सव परस्पर बन्धुत्व और भाईचारे की अविरल प्रवाहमान धारा है। कटुता, प्रभुता, अहंकार, क्रोध, मोह और कलुषित विचारों का विष कुण्ड होलिका दहन है तथा सादगीपूर्ण सहजत्व नैतिकता का अद्भुत प्रणय समागम है। मानवीय सम्वेदनशील प्रकृति, विश्व बन्धुत्व पारिवारिक अन्तर्भावित चरित्र और सर्वसमावेशी धर्म-जाति-भाषा-क्षेत्र और रंग विभेद खल-पाप वृत्ति का दहन ही होलिका दहन है। विविध रंगों से निमज्जित एकीकृत पर्वोत्सव यह रंगोत्सव है। वस्तुत:, होली रंगोत्सव मृदुता और संस्कारी संस्कृतियों का समिश्रित सिन्धु है, जहाँ परस्पर विरोधी विद्वेषी चिन्तना सदा के लिए समाप्त हो जाती है। अत:, नीति प्रीति सद्गीति भक्तिमय प्रतिमान रंग-रंगीला रंगोत्सव है।
होली राष्ट्रीय एकता का प्रतिनिधित्व करती है। भारत माता के नवरस स्वरूप का समागम रंगोत्सव मृदुता सरलता और अपनत्व का त्रिवेणी उत्सव है। आइए, हम सब भारतीय रंग- रंगीला होलिकोत्सव स्नेही चितवन शुचितापूर्ण होकर मनाएँ एवं अखंड राष्ट्र भारत को मुस्कानों और खुशियों से भर दें। दर्दिल जीवन की उदासीनता को कुसुमित सुरभित मुस्कुराहट से भरती यह होली वास्तविक मधुमास का सुकोमल मधुरिम सरसामृत है, जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के यथार्थवादी चिन्ता को चरितार्थ करती है।
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥