डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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तजें हम आरोप-प्रत्यारोपण, बढ़ें साथ मिल अलख जगाएं,
साहित्यलोक निकुंजित प्रांगण, चल उड़ान नभ गूँज कराएं।
आशंकाओं लसित सभी जग, हम आपस में विश्वास जगाएं,
साहित्यांगन दीपक अपनापन, समरसता आलोक जलाएं।
हम एक संघ एकत्व भाव मन, सहयोग परस्पर शक्ति बढ़ाएं,
एक धर्म हिन्दीमय हो भारत, काव्य गूंज नव क्रान्ति जगाएं।
साहित्य विज्ञ कविवृन्द अलंकृत, मिल प्रयास यश पटल बढ़ाएं,
गमनागम अभिलाष निमज्जित, स्वयं अटल कर्त्तव्य निभाएं।
क्षमाशील सम्मान दान ही, कार्य पटल नव जीत दिलाएं,
कहीं खीस मन टीस घाव मन, लक्ष्य विरत पथ राह दिखाए।
आएँ मिल हम राष्ट्र धर्म हित, नीति गीत नवमीत बनाएं,
सुखद सम्मिलन सारस्वत पल, अनुगुंजित नवनीत बनाएं।
तजें विवादों अन्तर्मन दुख, मधु माधवी समरस भायें।
नव विहान नव काव्य अरुणिमा, नव पौरुष व्यक्तित्व दिखाएं।
सबका साथ सहयोग अपेक्षित, तभी कर्म नव शौर्य दिखाए,
नव गाथा अस्तित्व धर्म सच, उत्कर्षक अनुभूति दिलाए।
आएँ ऊर्जावान मिले हम, हिन्दी हिन्दुस्तान बनाएं,
मातृभूमि भारत पद सेवन, दुर्लभ जीवन मान बढ़ाएं।
करें आज आह्वान जागरण, अखण्ड भारत अलख जगाएं।
युवाशक्ति शिक्षित रोजगार, नव भारत चहुँ प्रगति दिखाएं॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥