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सादगी और मासूमियत

वंदना जैन ‘शिव्या’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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सुनो मासूमियत,
तुम रहना सदा उपस्थित।

गुण बन जीवन सृजन में,
मानवता बन मन के आँगन में।

रंग बन पुष्पों, पत्तों और डालियों में,
बच्चों की सहर्ष तालियों में।

पक्षियों की बोलियों में,
दो हँसों की जोड़ियों में।

बातों के स्पर्श में,
मन के सहज हर्ष में।

सुरों, साजों के अंदाज में,
ममता की मधुर आवाज़ में।

प्रीत के गर्म एहसासों में,
अनछुए नर्म आभासों में।

सुनो सादगी,
तुम रहना सदा उपस्थित।

रीति और रिवाजों में,
पंछियों की परवाजों में।

दोपहर की छाँव में,
जीवन के हर पड़ाव में।

पायल पहने पाँव में,
शहर से दूर गाँव।

घने वृक्षों की छाँव में,
जीवन निर्वहन नाव में।

हृदय की भावनाओं में,
मन की मूक संवेदनाओं में॥

परिचय-वंदना जैन की जन्म तारीख ३० जून और जन्म स्थान अजमेर(राजस्थान)है। वर्तमान में जिला ठाणे (मुंबई,महाराष्ट्र)में स्थाई बसेरा है। हिंदी,अंग्रेजी,मराठी तथा राजस्थानी भाषा का भी ज्ञान रखने वाली वंदना जैन की शिक्षा द्वि एम.ए. (राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन)है। कार्यक्षेत्र में शिक्षक होकर सामाजिक गतिविधि बतौर सामाजिक मीडिया पर सक्रिय रहती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत व लेख है। काव्य संग्रह ‘कलम वंदन’ प्रकाशित हुआ है तो कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित होना जारी है। पुनीत साहित्य भास्कर सम्मान और पुनीत शब्द सुमन सम्मान से सम्मानित वंदना जैन ब्लॉग पर भी अपनी बात रखती हैं। इनकी उपलब्धि-संग्रह ‘कलम वंदन’ है तो लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा वआत्म संतुष्टि है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नागार्जुन व प्रेरणापुंज कुमार विश्वास हैं। इनकी विशेषज्ञता-श्रृंगार व सामाजिक विषय पर लेखन की है। जीवन लक्ष्य-साहित्य के क्षेत्र में उत्तम स्थान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘मुझे अपने देश और हिंदी भाषा पर अत्यधिक गर्व है।’

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