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सावन की शिवरात्रि

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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मासों में अतिरम्य है,श्रावण घटा फुहार।
कांवरियों से खुशनुमा,भक्ति प्रीति उपहार॥

काले रंगों में डुबा,नीलाम्बर घनश्याम मम।
इन्द्रधनुष लज्जित हुआ,देख वसन अभिराम॥

कृषकवृन्द हैं मुदित मन,शस्य श्यामला खेत।
धान पौध रोपण धरा,सावन शिव संकेत॥

नव पल्लव पादप कुसुम,तज सूखा अवसाद।
चख रसाल स्वादिष्ट तरु,कोकिल करे निनाद॥

वसुधानन कुसुमित खिला,सावन मास सुवास।
शिव शंकर जन भक्ति से,गुंजित नभ उल्लास॥

ढोल नगारे बज रहे,ब्रज सावन मधुगान।
नर-नारी मिल नाचते,करे भंग मधुपान॥

आनन्दित कांवर चले,रंग-बिरंगी टोप।
कंधे पर जलपात्र ले,सहते बारिश कोप॥

सावन है प्रिय सम्मिलन,प्रियतम शिव अभिलास।
जाति धर्म बिन भक्ति बस,शिवपूजन आभास॥

व्रत शिवरात्रि श्रावणी,शिव पूजन त्यौहार।
गंगाजल शिव पर चढ़े,पूजित विधि आचार॥

सकल पाप का नाश हो,रख सावन उपवास।
प्रेम भक्ति पूजन करें,महादेव विश्वास॥

शीत ग्रीष्म व्याकुल धरा,रिमझिम सावन मास।
प्रकृति चराचर हरितिमा,शंभु भक्ति आभास॥

सावन की शिवरात्रि में,पावन गंगा तीर।
भक्तों से पथ ख़ुशनुमा,भरे पात्र जल नीर॥

पावन सावन पूर्णिमा,आराधन शिव पर्व।
सुख वैभव यश शान्ति सब,मिले भक्ति उत्सर्ग॥

कूप सरोवर सरित सब,भरे वृष्टि घनश्याम।
कांवरिया कांवर लिए,हरिद्वार अविराम॥

कोरोना दो बरस से,शिवपूजन व्यवधान।
पूजित हों शिव गेह में,कांवर पथ सुनसान॥

कवि ‘निकुंज’ स्वागत करें,सावन मास सुहास।
पुण्य मास शिवरात्रि यह,शिवा शक्ति घर वास॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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